लखनऊ: दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद जागी सरकार ने 2013-14 के बजट में 1000 करोड़ रुपये के निर्भया फंड की घोषणा की. इस फंड से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश के हर जिले में वन स्टॉप सेंटर की स्थापना की. आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के हर जिले में वन स्टॉप सेंटर खुल चुके हैं. आज हम पड़ताल करेंगे पीएम सिटी वाराणसी और सीएम सिटी गोरखपुर के वन स्टॉप सेंटर यानी 'सखी' की सच्चाई की.
वाराणसी में 2017 में खुला वन स्टॉप सेंटर
वाराणसी में 2017 में वन स्टॉप सेंटर की स्थापना की गई. वाराणसी के सेंटर में प्रशासन ने हर तरीके की सुविधा पीड़िताओं को मुहया कराई है. फिर वो चाहे महिला पुलिस रिपोर्टिंग चौकी हो, अस्थाई आश्रय हो, चिकित्सीय सहायता हो या हो परामर्श की सुविधा. अब तक सेंटर में महिला हिंसा से जुड़े 2095 मामले आए हैं, जिनमें से अब तक 95% मामलों के निस्तारण का दावा किया जा रहा है.
गोरखपुर में 2016 में खुला वन स्टॉप सेंटर
सीएम सिटी गोरखपुर में वन स्टॉप सेंटर की स्थापना 2016 में हुई थी. वन स्टॉप सेंटर की बिल्डिंग सवालों के घेरे में है. नट-बोल्ट के सहारे फैब्रिकेटेड दीवारों पर बनी सेंटर की बिल्डिंग बारिश के दिनों में बुरी तरह टपकती है. सेंटर पर तैनात कर्मचारियों को 9 महीने से वेतन तक नहीं मिला है. अभी तक इस सेंटर ने 2854 पीड़ितों को मदद पहुंचाया है. सेंटर में सूचना पर पीड़िताओं को वैन से लाया जाता था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से वैन की सेवा नदारद है. कोई नहीं जानता वैन कहां गई.
वन स्टॉप सेंटर को यूपी में सखी सेंटर के नाम से भी जाना जाता है. यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसका मकसद हिंसा की शिकार महिलाओं को सखी की तरह मदद देना है. लेकिन गोरखपुर में लगता है कि खुद सखी के हालात सही नहीं हैं. हालांकि पीएम मोदी के शहर वाराणसी में हालात उतने भी बुरे नहीं हैं.
इसे भी पढ़ें-UP के उस जिले में 'सखी' का हाल, जहां एक साल में सबसे ज्यादा दर्ज हुए थे रेप केस