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जानिए क्यों है राजधानी के अस्पतालों की चिकित्सा सेवाओं का बुरा हाल, मरीजों की बाढ़ रहने की क्या है वजह? - संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट

प्रदेश सरकार स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर काफी गंभीर है, बावजूद इसके चिकित्सा सेवाओं (Medical Services In Lucknow) को लेकर कई सवाल उठने लगते हैं. जानिए क्यों राजधानी के अस्पतालों की चिकित्सा सेवा चरमरा जाती है. पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 31, 2023, 11:16 PM IST

लखनऊ :हाल ही में राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट यानी एसजीपीजीआई की इमरजेंसी में जगह न मिल पाने के कारण भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद भैरो प्रसाद मिश्रा के पुत्र प्रकाश का निधन हो गया था. इस घटना के बाद प्रदेश की चिकित्सा सेवाओं को लेकर कई सवाल उठने खड़े हो गए थे. विपक्षी नेताओं ने सरकार को घेरते हुए सरकारी तंत्र की नाकामी पर खूब हमले भी किए. वास्तव में राजधानी लखनऊ प्रदेश का सबसे बड़ा चिकित्सा का केंद्र है. यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि नेपाल और आसपास के राज्यों से भी मरीज इलाज के लिए जाते हैं. प्रदेश के 75 जिलों से भी बड़ी तादाद में मरीज रेफर होकर लखनऊ भेजे जाते हैं. यही कारण है कि राजधानी के अस्पतालों की चिकित्सा सेवाएं चरमरा जाती हैं.

अस्पताल में मरीजों की लाइन



प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में चिकित्सा के क्षेत्र में काफी काम किया था, हालांकि दो वर्ष कोविड महामारी में निकल गए. फिर भी योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज बनाने का एलान किया और इसे निर्णय को गति देते हुए तेजी से काम किया. इसी का नतीजा है कि अब प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 37 हो गई है. यही नहीं प्रदेश में 34 निजी मेडिकल कॉलेज संचालित हैं. इसका मतलब है कि 75 जिलों में 71 मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं. यही नहीं सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), नगरीय स्वास्थ्य केंद्रों के साथ ही एएनएम सेंटर्स तक प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था का एक बहुत बड़ा तंत्र है. लगभग हर जिले या पड़ोसी जिले में एक मेडिकल कॉलेज होते हुए भी आखिर यह स्थिति क्यों आती है कि मरीजों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल पाती और वह दम तोड़ देते हैं अथवा निजी चिकित्सकों या अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

पूर्व सांसद भैरो प्रसाद मिश्रा से मिलने पहुंचे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (फाइल फोटो)



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इस संबंध में कई जिलों में मुख्य चिकित्साधिकारी पद पर सेवाएं देने के बाद अवकाश प्राप्त करने वाले डॉ एस रहमान कहते हैं कि 'राजधानी लखनऊ की चिकित्सा सेवाएं इसलिए चरमरा जाती हैं क्योंकि आसपास के जिलों से ऐसे मरीजों को भी राजधानी के अस्पतालों के लिए रेफर कर दिया जाता है, जिनका इलाज उनके अपने जिले में ही संभव होता है. जिला अस्पतालों और सीएचसी-पीएचसी में अधिकांश ऐसे मरीजों को रेफर कर दिया जाता है, जिनका इलाज उसी अस्पताल में किया जा सकता है.' वह कहते हैं कि 'मैंने कई बार डॉक्टरों को इसके लिए चेतावनी दी है. इसके बावजूद कोई भी अपने सिर पर जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहता. मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है. कई बार दूर-दूर के जिलों से भी ऐसे मरीजों को राजधानी के लिए रेफर कर दिया जाता है, जिनका इलाज स्थानीय अस्पताल में होता तो शायद वह बच भी जाते. लंबी दूरी और इलाज में देरी उनकी जान ले लेती है. दुखद यह है कि ट्राॅमा सेंटर और मेडिकल कॉलेजों सहित लखनऊ के अस्पतालों के प्रशासकों को यह सब मालूम है. फिर भी वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते.' डॉ रहमान कहते हैं कि 'इसके लिए सरकारी स्तर पर सख्ती की जरूरत है. यदि किसी ऐसे मरीज को कोई डॉक्टर रेफर कर, जिसका स्थानीय स्तर पर इलाज संभव हो, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. यदि ऐसा किया जाने लगे, तो संभव है कि इस समस्या से निजात मिल पाए.'

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