लखनऊ : सरकार के लाख दावों के बावजूद प्रदेश में किसानों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. उनकी समस्याएं यथावत हैं और समाधान कोसों दूर. हां, सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन यह प्रयास नाकाफी हैं. अभी किसानों के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. यदि समस्याओं की बात करें तो प्रदेशभर के किसानों के लिए छुट्टा पशु सबसे बड़ी समस्या हैं. पिछले छह सालों में सरकार ने दावे तो बहुत किए पर हकीकत में तस्वीर नहीं बदली है.
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में छुट्टा पशुओं का मुद्दा तूल पर था. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस समस्या का निदान करने का वादा किया था. हरदोई में आयोजित एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि यह समस्या खत्म कर दी जाएगी, हालांकि स्थिति में अब तक कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. इन छुट्टा जानवरों के कारण तमाम लोगों ने अपने खेत पर्ती छोड़ रखे हैं. लगातार बारिश कम होने से पशुओं के लिए हरा चारा मिल पाना कठिन हो गया है. सैकड़ों गांवों में चरागाहों की जमीनों पर अवैध कब्जे हैं. ऐसे में पशुपालन जानवरों को छुट्टा छोड़ देना ही श्रेयष्कर समझते हैं. कई क्षेत्रों में बंदरों का आतंक है, जिससे बागवानी और कृषि दोनों के लिए संकट पैदा हो रहा है, लेकिन इस समस्या का भी कोई समाधान नहीं हो रहा है.
यदि सिंचाई की बात की जाए तो प्रदेश में बड़ी संख्या में किसान सिंचाई के लिए भूगर्भ जल पर निर्भर हैं. नहरों का दायरा बहुत कम या यूं कहें कि न के बराबर बढ़ा है. यह किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में भी दिखाई नहीं देता. मजबूरन किसानों को महंगे डीजल या महंगी बिजली से सिंचाई करानी पड़ती है. यदि नहरों से किसानों को सिंचाई के लिए सस्ता पानी उपलब्ध हो तो किसानों की लागत घटेगी और उनका मुनाफा बढ़ेगा. उर्वरक की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और फसलों की कीमतों में मामूली इजाफा ही होता है. प्राकृतिक उर्वरकों बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए, लेकिन इसके लिए अब तक किसान तैयार नहीं हो पा रहे हैं. यह बात और है कि पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई नीतियां बनाई हैं, बावजूद इसके किसान इनसे आकर्षित नहीं हो रहे हैं.