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कृषि क्षेत्र में सरकार के दावों और हकीकत में है बड़ा अंतर

केंद्र और प्रदेश सरकार के तमाम दावों के बावजूद यूपी के किसानों के हालत में कोई विशेष सुधार नहीं दिख रहा है. हालांकि सरकार तमाम योजनाओं के माध्यम से किसानों को लाभ पहुंचा रही है, लेकिन यह लाभ सरकारी मशीनरी की लचर कार्यशैली के चलते जरूरतमंद की बजाय गैर जरूरी लोगों को मिल रहा है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Jun 14, 2023, 7:33 PM IST

लखनऊ : सरकार के लाख दावों के बावजूद प्रदेश में किसानों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. उनकी समस्याएं यथावत हैं और समाधान कोसों दूर. हां, सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन यह प्रयास नाकाफी हैं. अभी किसानों के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. यदि समस्याओं की बात करें तो प्रदेशभर के किसानों के लिए छुट्टा पशु सबसे बड़ी समस्या हैं. पिछले छह सालों में सरकार ने दावे तो बहुत किए पर हकीकत में तस्वीर नहीं बदली है.

किसानों के लिए सरकार की योजनाएं.


पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में छुट्टा पशुओं का मुद्दा तूल पर था. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस समस्या का निदान करने का वादा किया था. हरदोई में आयोजित एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि यह समस्या खत्म कर दी जाएगी, हालांकि स्थिति में अब तक कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. इन छुट्टा जानवरों के कारण तमाम लोगों ने अपने खेत पर्ती छोड़ रखे हैं. लगातार बारिश कम होने से पशुओं के लिए हरा चारा मिल पाना कठिन हो गया है. सैकड़ों गांवों में चरागाहों की जमीनों पर अवैध कब्जे हैं. ऐसे में पशुपालन जानवरों को छुट्टा छोड़ देना ही श्रेयष्कर समझते हैं. कई क्षेत्रों में बंदरों का आतंक है, जिससे बागवानी और कृषि दोनों के लिए संकट पैदा हो रहा है, लेकिन इस समस्या का भी कोई समाधान नहीं हो रहा है.

किसानों के लिए सरकार की योजनाएं.




यदि सिंचाई की बात की जाए तो प्रदेश में बड़ी संख्या में किसान सिंचाई के लिए भूगर्भ जल पर निर्भर हैं. नहरों का दायरा बहुत कम या यूं कहें कि न के बराबर बढ़ा है. यह किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में भी दिखाई नहीं देता. मजबूरन किसानों को महंगे डीजल या महंगी बिजली से सिंचाई करानी पड़ती है. यदि नहरों से किसानों को सिंचाई के लिए सस्ता पानी उपलब्ध हो तो किसानों की लागत घटेगी और उनका मुनाफा बढ़ेगा. उर्वरक की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और फसलों की कीमतों में मामूली इजाफा ही होता है. प्राकृतिक उर्वरकों बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए, लेकिन इसके लिए अब तक किसान तैयार नहीं हो पा रहे हैं. यह बात और है कि पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई नीतियां बनाई हैं, बावजूद इसके किसान इनसे आकर्षित नहीं हो रहे हैं.

किसानों के लिए सरकार की योजनाएं.




सरकार के दावे अपनी जगह हैं. योगी सरकार ने अब तक गन्ना किसानों को दो लाख दो हजार करोड़ से अधिक गन्ना मूल्य का भुगतान किया है, तो वहीं पीएम किसान सम्मान निधि से 2.60 करोड़ किसानों को रु 52190 करोड़ खातों में ट्रांसफर हुए हैं. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 23 लाख 55 हजार कृषकों की फसलों का बीमा भी किया गया है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत 4928 कार्य पूरे किए गए हैं, तो वहीं 1874 खेत-तालाबों की खुदाई का कार्य जारी है. 36 सिंचाई परियोजनाएं पूरी कर 23.04 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचन क्षमता बढ़ाई गई है. 62 जिलों में 842 करोड़ रु. से 2100 नए नलकूपों का निर्माण भी किया गया है. सरकार का दावा है कि 8000 राजकीय नलकूपों का आधुनिकीकरण, 1960 नवीन राजकीय नलकूपों का निर्माण तथा 1045 खराब राजकीय नलकूपों का पुनर्निर्माण भी किया गया है. दो लाख 51 हजार 287 किमी नहरों की सिल्ट सफाई भी की गई है. बुंदेलखंड क्षेत्र में बडवार शील गुरसराय मुख्य नहर के किमी. 45.66 फीडर चैनल के निर्माण की परियोजना का कार्य पूरा किया गया है. विगत 15 वर्षों में पहली बढ़वार झील भरी गयी ।


प्रगतिशील किसान अतुल गुप्ता कहते हैं प्रदेश में किसानों स्थिति आंकड़ों में भले बदली हो पर हकीकत में आज भी बहुत बदलाव नहीं है. हां, सड़कों का जाल बिछाने से किसानों को अपने उत्पाद मंडी तक आसानी से पहुंचाने की सुविधा मिली है. इसके बावजूद सिंचाई और छुट्टा पशुओं के विषय में सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है. कृषि उपकरणों पर सरकार से जो छूट या सब्सिडी मिलती है, वह सीधे खाते में दी जानी चाहिए. इस व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता की जरूरत है. अब तक इस दिखा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं. कृषि उत्पादक समूहों (एफपीओ) में भी किसानों से ज्यादा पैसे वाले लोग लाभ उठाने के लिए घुस गए हैं. यदि इन सारी समस्याओं का निदान निकलते तो शायद किसानों का कुछ भला हो सके.


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