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नाटक 'खुदा खैर करे' का हुआ मंचन, दर्शक हंस-हंसकर हुए लोटपोट - रंगकर्मी डॉ अनिल रस्तोगी

लखनऊ के वाल्मीकि रंगशाला में नाटक ‘खुदा खैर करे’ का मंचन किया गया. इस अवसर पर रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी और विजय वास्तव सहित कई कलाकारों को नौशाद सम्मान से विभूषित किया गया.

नाटक 'खुदा खैर करे' का हुआ मंचन.
नाटक 'खुदा खैर करे' का हुआ मंचन.

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Published : Feb 21, 2021, 9:19 AM IST

लखनऊ :नौशाद संगीत डेवलपमेंट सोसायटी की ओर से और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से गोमतीनगर स्थित वाल्मीकि रंगशाला में मंचित हास्य नाटक ‘खुदा खैर करे’ ने दर्शकों को खूब हंसाया. इस अवसर पर रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी और विजय वास्तव सहित कई कलाकारों को नौशाद सम्मान से विभूषित भी किया गया. मुख्य अतिथि पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डॉ. अनीस अंसारी, विशिष्ट अतिथि समाजसेवी पूर्व एमएलसी सिराज मेंहदी और डॉ. विक्रम सिंह ने कलाकारों को सम्मानित किया.

कलाकारों को नौशाद सम्मान से किया गया विभूषित.

इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ. अंसारी ने कहा कि अपनी संस्कृति और परम्पराएं हमारे लिए ज़्यादा महत्व रखती हैं. विदेशी नाटकों की अपेक्षा अपनी परम्पराओं और मिट्टी से जुड़ी हुई नाट्यकृतियों के विविधता भरे प्रयोग रंगमंच को निश्चय ही बढ़ावा मिलेगा. वरिष्ठ रंगकर्मी और सिने अभिनेता डॉ. अनिल रस्तोगी ने कहा कि आज थियेटर का फलक पहले की अपेक्षा विशाल हुआ है, इसका सकारात्मक प्रयोग करना श्रेयस्कर होगा. इससे पहले सोसायटी के अध्यक्ष अतहर नबी ने सभी अतिथियों का स्वागत करने और संगीतकार नौशाद के संग बिताए क्षणों को याद करते हुए कलाकारों को सम्मानित करना अपना सौभाग्य बताया. उन्होंने कहा कि ड्रामे की यह खूबी बेमिसाल है कि वह दर्शकों के सामने जीवंत कलाकार प्रस्तुत करते हुए उसे किसी कहानी या घटनाओं से जोड़ते हैं. आज देश में 600 से अधिक इकाईयां ड्रामा को लेकर निरंतर सक्रिय हैं.

नाटक 'खुदा खैर करे' का हुआ मंचन.

इन्हें भी मिला सम्मान
मुम्बई के आफाक अहमद, इकबाल नियाजी और डॉ. शालिनी वेद, लखनऊ के राजा अवस्थी, प्रभात बोस, वामिक खान, नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह और बीएन ओझा को नौशाद सम्मान से अलंकृत किया गया.

यह थी नाटक की दिलचस्प कहानी
बड़े शहरों में किराए के मकानों की दिक्कत को सामने रखते हुए नाटक 'खुदा खैर कर' में बखूबी दिखाया गया. सच छुपाने के लिए एक झूठ के पीछे छुपे सौ झूठ दर्शकों को लगातार ठहाके लगाने को मजबूर करते रहे. शादीशुदा नौजवान शराफत नौकरी करने दूसरे शहर में जाता है. वहां मकान मिलने में दिक्कतें देखकर मकान मालिक नवाब साहब को खुद को अविवाहित बताकर मकान ले लेता है. कुछ दिन सब ठीक चलता है मगर दर्शकों की हंसी की फुहारें तब छूटनी शुरू होती है. जब शराफत की पत्नी शमीम अचानक वहां आ जाती है और शमीम को शराफत अपनी आपा बताकर नवाब से परिचित कराते हैं. नवाब जहां अपनी इकलौती बेटी पम्मी से शराफत की शादी करा उसे घरजमाई बनाने की सोचते हैं. वहीं धीरे-धीरे शमीम से इकतरफा इश्क कर शादी करने के ख्वाब भी देखने लगते हैं. बात कुछ और आगे बढ़े इससे पहले शमीम के पिता मीर साहब अपने बेटे इमरान के साथ आ धमकते हैं. फिर दर्शकों के ठहाकों के बीच दिलचस्प घटनाक्रम में सारे राज खुलते हैं और इमरान की शादी पम्मी से पक्की हो जाती है.

नाटक के कलाकार
आत्माराम सावंत के लिखे मूल मराठी नाटक ‘खुदा खैर करे’ के श्रीधर जोशी द्वारा किए हिन्दी रूपांतरण का किया है. प्रसिद्ध रचनाकार हसन काजमी ने नाटक का निर्देशन में किया गया. नाटक में शराफत-अशोक लाल, मिट्ठू- शेखर पाण्डेय, नवाब साहब- तारिक इकबाल, शमीम- दीपिका श्रीवास्तव, मीर साहब- आनन्दप्रकाश शर्मा, पम्मी- श्रद्धा बोस, नाना मामा- गिरीश अभीष्ठ और नौकर- सचिन कुमार शाक्य बनकर मंच पर उतरे तथा दर्शकों को हंसाया.

मंच के पीछे के पक्षों में दृश्यबंध डिजाइनिंग चन्द्रनी मुखर्जी, सेट निर्माण कैलाश कांडपाल और मोहम्मद हामिद-मोहम्मद राशिद, रूपसज्जा सभ्यता भारती और सलमा बानो, वस्त्र विन्यास कौसर जहां, प्रस्तुति नियंत्रण अब्दुल मारूफ और अनवर हुसैन, प्रेक्षागृह नियंत्रण कमर सुल्ताना और चैधरी यहया, उद्घोषणा हसन काजमी की और कार्यशाला और प्रस्तुतिकरण परिकल्पना अतहर नबी की रही.

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