लखनऊ: हर्बल गुलाल बनाने के बाद अब एनबीआरआई ने मंदिरों में इस्तेमाल हो चुके फूलों और प्याज के छिलकों से हर्बल रंग बनाने की तकनीक विकसित की है. बाजारों में जहां पर प्याज के छिलकों को फेंक दिया जाता है, वहां से उनको लाकर साफ करके धूप में सूखाकर उनसे रंग बनाने की तैयारी की जा रही है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह बाजार में बिकने वाले रंगों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है. साथ ही इनसे लोगों को ताजगी भी महसूस होगी. एनबीआरआई के फूलों से बने रंग बाजार में उपलब्ध हैं, जबकि प्याज की छिलकों से बने रंग भी जल्द ही बाजार में लाने की तैयारी है.
नुकसानदायक है सिंथेटिक रंग
एनबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल ने बताया कि इन हैवी मेटल्स युक्त रंगों से सांस फूलती है. इनसे दमा और खुजली होने की आशंका बनी रहती है. अगर यह पेट में चला जाए तो आंतों में संक्रमण के अलावा डाइजेस्टिव सिस्टम को बिगाड़ भी सकता है. यही नहीं जी मचलना और चक्कर आने की समस्या भी हो सकती है. गर्भवती महिलाओं को इन रंगों से हर हाल में दूरी बनाए रखने की जरूरत होती है. सिंथेटिक रंग आंख और कान में चला जाए तो तुरंत ठंडे पानी से धोएं. इसके बाद किसी चिकित्सा विशेषज्ञ को दिखाएं.
महीनों के सर्वे के बाद तैयार हुई तकनीक
एनबीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल ने बताया कि इस तकनीक के लिए एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने 8 महीने सर्वे किया है. इस दौरान उन्होंने कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज और बनारस के मंदिरों को आधार बनाया. इन मंदिरों में हर दिन तकरीबन कई टन फूल चढ़ते हैं, जिनका कहीं कोई इस्तेमाल नहीं हो पाता. इससे पहले सीमैप ने अपने वेस्ट फूलों से अगरबत्ती बनाने की तकनीक विकसित की थी. अबकी बार प्याज के छिलकों को एकत्रित करके उससे हर्बल रंग तैयार करने की तकनीक विकसित की जा रही है. यह कार्य अभी चल रहा है.
केमिकल युक्त रंगों से ज्यादा सुरक्षित
डॉ. महेश पाल ने बताया कि संस्थान ने शहर के मंदिरों के अलावा कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी और लखनऊ के प्रख्यात मंदिरों से निकले फूलों से हर्बल रंग तैयार किया है. मंदिरों में कम से कम 8 से 10 टन वेस्ट फूल आराम से मिल जाते हैं. उसे हम लोग कलेक्ट करके अपने लैब में इस्तेमाल करने के लिए ले आते हैं. उसी से हर्बल रंग बनाना शुरू करते हैं. इस तरह मंदिरों से निकले हुए वेस्ट फूल बर्बाद नहीं होते हैं. इसका इस्तेमाल एक हर्बल रंग तैयार करने के रूप में हो जाता है. एनबीआरआई के डॉ. महेश पाल ने बताया कि एनबीआरआई के हर्बल गुलाल बाजार में उपलब्ध होते हैं. कोई भी वहां जाकर एनबीआरआई हर्बल रंग खरीद सकता है. साथ ही इस बात का ख्याल रखें कि बाजार में डुप्लीकेट रंग भी बहुत आते हैं, इसलिए एनबीआरआई का हॉल मार्क जरूर देंखे.
केमिकल का प्रयोग कम मात्रा में
डॉ. महेश ने बताया कि हर्बल रंग बनाने के लिए सबसे पहले मंदिरों से वेस्ट फूल और प्याज के छिलके कलेक्ट करके उसे लैब में लाते हैं. फिर इसे अच्छी तरह से धोकर धूप में सुखवाते हैं. इसके बाद लैब में लाकर इसे मशीन के जरिए पीस लेते हैं. फिर इसमें हल्की मात्रा में चेहरे पर नुकसान ना पहुंचाने वाले केमिकल यूज करते हैं और लोगों के लिए हर्बल रंग तैयार करते है. जो आपकी स्किन के साथ आपकी सेहत का भी ख्याल रखते हैं.