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लखनऊ: लॉकडाउन ने तोड़ी मोचियों की कमर, कैसे जले घर का चूल्हा - मोचियों को खाने की दिक्कत

लॉकडाउन के बाद छोटे से लेकर बड़े सभी उद्योग-धंधे प्रभावित हुए हैं. इसका असर मोचियों पर भी पड़ा है. लोगों के घर से नहीं निकलने के कारण मोचियों का काम प्रभावित हुआ है, जिससे उनके सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

मोचियों पर लॉकडाउन का असर
मोचियों को दो जून की रोटी के लाले

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Published : Apr 24, 2020, 7:47 PM IST

लखनऊ: लॉकडाउन के कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिससे मोचियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. उनकी स्थिति यह है कि दो जून की रोटी जुटाने के लिए भी उन्हें एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है.

लॉकडाउन का दिखा मोचियों पर असर

इस दौरान ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की. हमने जानने की कोशिश की है कि आखिर काम धंधा बंद होने के बाद इन मोचियों का परिवार कैसे चल रहा है. किन परेशानियों का इन्हें सामने करना पड़ रहा है. हमसे बात करने के दौरान उनका दर्द छलक उठा.

हमने बात की अमेठी के रहने वाले राकेश कुमार से, राकेश कई वर्षों से लखनऊ में रहकर बूट पॉलिश का काम करते हैं. उनके पिता का भी यही पेशा है. लॉकडाउन होने से पहले पिता तो घर निकल गए, लेकिन राकेश लखनऊ में ही फंस कर रह गए. अब उनके सामने खाने की विकराल समस्या पैदा हो गई है. कमाई तो कुछ है नहीं ऐसे में परिवार कैसे पलेगा. इसकी फिक्र राकेश को दिन-रात खाए जा रही है.

राकेश ने बताया कि रोजगार का जरिया बूट पॉलिस ही है और इसी से जो कमाई होती है, उसी से परिवार गुजर-बसर करता है, लेकिन लॉकडाउन ने सारा काम चौपट कर दिया है. ये जिंदगी अब पहाड़ जैसी लगने लगी है.

राकेश ने हमें आगे बताया कि लखनऊ में भी रहने को घर नहीं है, जहां पॉलिश की दुकान लगाते हैं, उसी फुटपाथ पर अपनी गृहस्थी भी बसा रखी है. इसी में बर्तन हैं. यहीं पर मांगकर जो राशन इकट्ठा किया है, वही राशन है और यहीं पर चूल्हा जलता है, तब खाना पकता है. आहिस्ता-आहिस्ता फुटपाथ पर ही जिंदगी गुजर रही है. दूसरों के जूतों पर पॉलिश कर उनके जूते चमकाकर अपनी किस्मत चमकाने वाले मोची राकेश की तरह हजारों मोचियों की दुकानों पर कोरोना ने मानो ताला लगा दिया है.

अमेठी में रहता है परिवार

राकेश का भरा-पूरा परिवार अमेठी में रहता है. परिवार के बारे पूछने उसने हमें बताया कि घर में बहने हैं, पत्नी है, बच्चे हैं, माता-पिता हैं और उन सब का खर्च उसे ही उठाना पड़ता है. आम दिनों में बूट पॉलिश कर के 250 से 300 सौ रपये कमा लेते थे, लेकिन लॉकडाउन में डरते-डरते दुकान खोल कर भी बैठते हैं, लेकिन कोई ग्राहक आता ही नहीं है. ऐसे में फिर से मायूस होकर दुकान समेट लेते हैं. राकेश का कहना है कि सरकार ने जो मजदूरों को एक हजार रूपये देने की बात कही है. मुझे अब तक वह भी नहीं मिले हैं. पिताजी नगर निगम में नाम दर्ज कराने गए थे तब तक वहां पर फार्म ही खत्म हो चुके थे. ऐसे में कोई सरकारी सहायता भी नहीं मिल पा रही है.

दूसरों के जूतों पर पालिश कर उनके जूते चमकाकर अपनी किस्मत चमकाने वाले मोची राकेश की तरह हजारों मोचियों पर कोरोना कहर बनकर टूटा है.
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