राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित हनुमान सेतु मंदिर में संगीत संध्या. देखें खबर लखनऊ : हनुमान सेतु मंदिर में बीते एक दशक से चली आ रही भजन पाठ और हनुमान चालीसा के पाठ बीते तीन साल से ठप है. कोरोना के बाद बंद हुए इस परंपरा को दोबारा से शुरू करने के लिए भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने दोबारा से शुरू कराने की तैयारी शुरू कर दी है. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वह इस परंपरा को दोबारा से शुरू करने के लिए मंदिर समिति से बात करेंगे. इसके लिए जल्दी नए सिरे से प्रस्ताव बनाकर मंदिर समिति को भेजा जाएगा. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि मंदिर में भजन व हनुमान चालीसा का पाठ न केवल आने वाले भक्तों के लिए भगवान के भक्ति में रमने का एक बेहतरीन माध्यम था, बल्कि विश्वविद्यालय में पढ़ रहे संगीत के छात्रों को भी उनके हुनर को निकालने का एक बेहतरीन प्लेटफार्म भी मुहैया होता था.
राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित हनुमान सेतु मंदिर में संगीत संध्या. हनुमान सेतु मंदिर में 2011 से शुरू हुई थी परंपरा
भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. कमलेश दुबे ने बताया कि विश्वविद्यालय ने वर्ष 2011 में मंदिर समिति के साथ मिलकर मंदिर में शास्त्रीय संगीत के माध्यम से भजन संध्या वह हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कराया था. उन्होंने बताया कि भारत की शास्त्रीय संगीत की पद्धति हमारे मंदिरों से जुड़ी हुई है. हमारे जितने भी शास्त्रीय संगीत हैं वह सबसे पहले मंदिरों में ही गाए जाते थे. आज भी देश के कई बड़े मंदिरों में यह परंपरा चली आ रही है. इसी को देखते हुए वर्ष 2011 में भातखंडे विश्वविद्यालय ने अपने छात्रों को संगीत की शिक्षा देने के साथ ही इसके रियाज करने के लिए हनुमान मंदिर के साथ एक पारस्परिक संबंध स्थापित किया था. इसके माध्यम से विश्वविद्यालय में पढ़ रहे शास्त्रीय संगीत के छात्र हर 15 दिन पर मंगलवार व शनिवार को मंदिर परिसर में भजन संध्या वह हनुमान चालीसा का पाठ करते थे.
लखनऊ की प्रमुख पहचान बन गई थी भजन संध्या
डॉ. कमलेश दुबे के अनुसार भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की ओर से बीते करीब एक दशक से हनुमान सेतु स्थित मंदिर पर हर मंगलवार व शानिवार को होने वाली भजन संध्या के लिए मंदिर प्रशासन हमारे छात्रों को मंच उपलब्ध करता था. इस आयोजन को सुनने के लिए मंदिर में आने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती थी. भजन संध्या लखनऊ में एक नई परंपरा के रूप में पहचान बन गई थी. कोरोना संक्रमण काल ने इस विधा पर रोक लगा दी थी. इसके चलते बीते तीन वर्षों से दशकों से चली आ रही यह परंपरा ठप है. डॉ. दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन दोबारा से मंदिर परिसर के साथ मिलकर इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की तैयारी कर रहा है. इस बार यह परंपरा सिर्फ हनुमान सेतु के साथ शहर के कई मंदिरों में भी शुरू की जाएगी. इससे छात्रों को संगीत साधना का बेहतर विकल्प मिल सकेगा.
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