लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी के चलते सरकार ने स्कूल को 30 अप्रैल तक बंद करने का निर्णय लिया है और अमूमन कुछ इसी तरह के फैसले देश के बाकी राज्यों में भी लिए जा रहे हैं, लेकिन ये फैसले लेने में कितनी देर हो गई, इस पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है. लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में इसकी चिंता काफी पहले से जताई जाने लगी थी. इसके काफी भयावह परिणाम देखने की चेतावनी भी जारी की जाती रही, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. ताजा हालात इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि अगर हम वक्त पर चेत जाते तो कम से कम स्थिति इतनी भयानक नहीं होती.
चिंता का कारण यह है कि बच्चे ऐसे संक्रमण की स्थिति में सुपर स्प्रेडर की तरह काम करते हैं क्योंकि शिक्षण संस्थान कितनी भी कोशिश और वादें क्यों न कर लें, लेकिन छोटे बच्चों से कोविड प्रोटोकॉल को लागू करवा पाना असंभव है. यहां तक कि छोटे बच्चे बिना हाथ धुले अपने हाथ भी मुंह में लगा लेते हैं. इस पर अगर कोई शिक्षण संस्थान अगर ये दावा करे कि वो बच्चों से कोविड प्रोटोकॉल को लागू करवाएगा तो ये सीधे तौर पर आंखों में धूल झोंकने के बराबर होगा.
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक (आइएपी) ने जारी की थी चेतावनी
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक (आइएपी) ने सरकार को पत्र लिख कर यह बताया भी था कि सरकार अगर बच्चों के स्कूल खोलने का निर्णय लेती है तो कोरोना संक्रमण के परिणाम बेहद ज्यादा तेजी से बढ़़ सकते हैं. साथ ही उसकी कई वजहों का संदर्भ लेते हुए मुख्य रूप से ये भी बताया था कि छोटे बच्चे कोरोना के संक्रमण के लिए सुपर स्प्रेडर के तौर पर काम कर सकते हैं. साथ ही ये भी बताया गया था कि भारत ने जितना बेहतर तरीके से कोरोना की लड़ाई में अच्छे परिणाम दिए हैं, वो सभी बेकार साबित हो जाएगा. हर एक बच्चा सुपर स्प्रेडर की तरह काम करेगा और घर में अपने मां-बापस, भाई-बहन, दादा-दादी सभी को संक्रमित कर देगा और आज के दौर में कहा जाए तो कुछ ऐसे ही हालात बनते हुए दिखाई दे रहे हैं.