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चाइल्ड लाइन को बीते सात वर्षों में मिले 70 नवजात, अमानवीय कृत्य के पीछे आ रही यह बात - Child Line Received 70 Abandoned Newborns

आंकड़ों के मुताबिक पिछले सात वर्ष में चाइल्ड लाइन को जिले में लावारिस छोड़े गए 70 नवजात मिलेृ. इनमें 25 लड़के और 45 लड़कियां थीं. इन नवजातों को फेंकने की वजह बिना शादी के मां बनना और बेटे की चाहत में बेटियों को फेंकने की बात सामने आई है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 28, 2023, 1:08 PM IST

चाइल्ड लाइन को बीते सात वर्षों में मिले 70 नवजात. देखें खबर

लखनऊ : बेटा और बेटी में अंतर करने वाले लोग शायद यह बात भूल जाते हैं कि आज के समय में बेटी और बेटा एक समान हैं. दोनों में कोई अंतर नहीं है. बेटियां भी अभिभावकों का सिर गर्व से ऊंचा कर रही हैं, लेकिन हमारे समाज में आज भी एक वर्ग ऐसा है जहां बेटी के होने पर खुशियां नहीं, बल्कि बेटी को झाड़ियां, मंदिरों की चौखट या नहर में फेंक देता है. राजधानी में पिछले कुछ वर्षों से नवजात को फेंकने की घटनाएं सामने आ रही हैं. कभी झाड़ियों तो कभी कूड़ेदान में नवजात मिले हैं. यह अमानवीय कृत्य समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है.

अमानवीय कृत्य के पीछे आ रही यह बात.

पालना स्थल भी काम न आया :बीते 28 जून को केजीएमयू के क्वीन मैरी अस्पताल में आश्रय पालना स्थल बनाया गया है. जिसका लोकार्पण उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने किया था. जिससे अनचाहे नवजात को जीने का अधिकार प्राप्त हो और इच्छुक दंपती इन मासूम को विधि अनुरूप गोद लेकर अपना परिवार पूरा कर सकेंगे. बीते 16 अगस्त को कुड़िया घाट में एक दंपती ने पालना स्थल में नवजात को रखने के बजाए गोमती नदी में जिंदा फेंक दिया. हालांकि, खेल रहे चार बच्चों ने नवजात को बाहर निकाला. बीते शुक्रवार को इलाज के दौरान नवजात को मौत हो गई थी.

चाइल्ड लाइन को बीते सात वर्षों में मिले 70 नवजात.

तीन माह तक होता है इंतजार : चाइल्ड लाइन की निदेशक संगीता शर्मा ने बताया कि लावारिस नवजात की सूचना मिलते ही चाइल्ड लाइन टीम (1098) मौके पर जाकर उसका मेडिकल करवाती है. नवजात के स्वस्थ होने पर उसे सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमिटी) के सामने पेश किया जाता है. फिर मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद नवजात को दत्तक गृहण इकाई में भेज दिया जाता है. जहां तीन माह तक सीडब्ल्यूसी नवजात के मां-बाप का इंतजार करती है. तीन माह की अवधि समाप्त होने के बाद शिशु के गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर होती है. राजधानी में राजकीय बाल गृह शिशु, श्रीराम औद्योगिक अनाथालय और लीलावती दत्तक ग्रहण इकाई में एडॉप्शन सेंटर हैं. शिशु के गोद लेने की प्रक्रिया में कम से कम डेढ़ से दो साल का समय लगता है. इस प्रक्रिया के बाद संतानविहीन दंपती नवजात को अपना सकते हैं. उससे पहले नवजात की देखभाल एडॉप्शन सेंटर में ही की जाती है.

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