लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्षेत्रवार विधायकों और सांसदों के साथ बैठकें कर फीडबैक लेना शुरू किया है. सीएम के इस कदम को दो तरह से देखा जा रहा था. एक तो तमाम नेता जिला स्तर पर सुनवाई न होने से परेशान थे, अब वह अपनी बात अपने नेता से कह सकेंगे, वहीं दूसरी ओर इन नेताओं से मिले फीडबैक के आधार पर लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में भी आसानी होगी. पिछले दिनों दिल्ली में योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी बैठक हुई थी. माना जा रहा है लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री ने सीधे योगी आदित्यनाथ से उत्तर प्रदेश की राजनीति का फीडबैक लिया और उनसे चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने के लिए कहा था. वैसे भी प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते यह उनका दायित्व भी है कि वह लोकसभा में पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें जिता कर भेजें. योगी आदित्यनाथ ने इस पर अभी से काम करना शुरू कर दिया है.
प्रदेश में योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल पूरा होने में अब कुछ ही माह शेष हैं. सरकार गठन के कुछ महीने बाद ही कई विधायकों, सांसदों और मंत्रियों ने दबी जुबान पार्टी नेतृत्व को यह बताना शुरू कर दिया था कि जिला स्तर पर अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते. डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और उनके अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद में हुआ विवाद जगजाहिर है. इस विवाद की पंचायत केंद्रीय नेतृत्व को करनी पड़ी और अंततः अमित मोहन प्रसाद का विभाग से ट्रांसफर किया गया. भारतीय जनता पार्टी के एक अनुशासित दल होने के कारण विधायकों और सांसदों की शिकायतें मीडिया में कम आईं, लेकिन नेतृत्व के सामने नेताओं ने अपनी बात खुल कर रखी. शायद इन्हीं शिकायतों को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री ने विधायक-सांसदों और क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठकों का सिलसिला आरंभ किया है. दो दिन पहले ऐसी ही एक बैठक में गोंडा के सीडीओ की नेताओं द्वारा शिकायत पर कार्रवाई की गई. पार्टी और सरकार समझते हैं कि यदि नेताओं का ही इकबाल नहीं रहेगा और उनकी बात नेता नहीं सुनेंगे, तो वह जनता में अपनी पकड़ कैसे मजबूत कर पाएंगे. इसीलिए यह संदेश देने की कोशिश भी हो रही है कि पार्टी नेताओं की बात न सुनने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.
दूसरी ओर क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठककर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक-एक विधानसभा और संसदीय सीट पर गहन चर्चा कर रहे हैं. किस सीट पर पार्टी की स्थिति कमजोर है? कहां किस तरह के सुधार की जरूरत है? किस तरह के उपाय करके पार्टी अपनी स्थिति सुधार सकती है, इसे लेकर मुख्यमंत्री नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं. लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा जितनी ज्यादा सीटें जीतेगी योगी का कद उतना और बढ़ेगा. प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लोकसभा चुनाव की पूरी जिम्मेदारी दे रखी है. बात और है कि भाजपा में संगठन कई स्तर पर काम करता है और बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक पार्टी की तैयारी सतत चलती रहती है. विधायकों, सांसदों और क्षेत्रीय नेताओं से मिले फीडबैक के आधार पर योगी अपनी रणनीति बनाएंगे और जरूरी कदम भी उठाए जाएंगे. संभव है कि यह फीडबैक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी दें. इसमें कोई संदेह नहीं कि क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठकों का फायदा पार्टी को जरूर मिलेगा. वहीं नेताओं को भी अपनी बात नेतृत्व को बता पाने का संतोष तो होगा ही. भले ही उनकी सुनवाई हो या न हो.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक विकास दुबे कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी का संगठन कई स्तर पर काम करता है. पार्टी सीट वार सर्वे और फीडबैक अलग-अलग स्तरों पर प्राप्त करते हैं. सरकार अपनी तरह से यह फीडबैक ले रही है. नेताओं से मिले सभी अलग-अलग सुझाव पर नेतृत्व समग्रता से विचार और चिंतन करता है, जिसके बाद आगे की रणनीति बनाई जाती है. क्षेत्रीय नेताओं के साथ मुख्यमंत्री की बैठकें उपयोगी जरूर होंगी, क्योंकि जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता असल मुद्दों को जानते हैं और उनका समाधान भी. हां, नेताओं की सुनवाई न होना एक गंभीर विषय है. कई नेता दबी जुबान या शिकायत करते हैं. मुख्यमंत्री के साथ मीटिंग के बावजूद छोटे-छोटे विषयों को कोई नेता उनके सामने नहीं रखना चाहिए. ऐसे में इस समस्या का पूरा निदान हो जाए यह कहना कठिन है. असल में चिंता के लिए अधिकारियों से ज्यादा सुलभ नेता होते हैं. यही कारण है कि लोग सुनवाई ना होने पर अपनी शिकायतें लेकर नेताओं के पास जाते हैं. अब यदि नेताओं की सुनवाई नहीं हुई तो लोग यह मानने लगते हैं कि नेता का अधिकारियों पर कोई दबाव नहीं है और नेता में नेतृत्व क्षमता का ही अभाव है. ऐसे में नुकसान इन नेताओं और अंततः पार्टी को ही चुकाना होता है. यह बात पार्टी और सरकार को जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना ही अच्छा है.
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