लखनऊ :बीते दिनों क्यूएस रैंकिंग ने विश्व के टॉप विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थानों की सूची जारी की. इस सूची में हमारे देश से 45 विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थान जगह बनाने में कामयाब रहे. सबसे बड़ी कामयाबी आईआईटी बॉम्बे को मिली. इस वर्ल्ड रैंकिंग में 149 रैंक हासिल कर पूरे देश को गौरवान्वित किया है. इस रैंकिंग में पहले स्थान पर अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी है. अगर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश देश में सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही यहां पर विश्वविद्यालयों व शिक्षा संस्थाओं की संख्या भी दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. इस रैंकिंग में उत्तर प्रदेश की तीन संस्थाओं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय व आईआईटी कानपुर ने जगह बनाई है. इसके अलावा एक भी राज्य विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है, जिसमें क्यूएस रैंकिंग में जगह पाने के लिए कोई संभावना दिख रही हो. इस पूरी रैंकिंग सिस्टम पर विशेषज्ञों का कहना है कि 'क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में आना राज्य विश्वविद्यालयों के लिए आसान नहीं है. हमारे राज्य विश्वविद्यालयों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य विश्वविद्यालयों के पास केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर व फंड मौजूद नहीं होता है.'
उत्तर प्रदेश सेंटर फॉर रैंकिंग एंड एक्रेडिटेशन मेंटरशिप (उपक्रम) की डायरेक्टर प्रोफेसर पूनम टंडन ने बताया कि 'बीते कुछ वर्षों में हमारे विश्वविद्यालय देश विदेश के दूसरे रैंकिंग में आना शुरू हो गए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में संचालित करीब 29 राज्य विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है. विशेष तौर पर शोध के क्षेत्र में हमारे शिक्षक काफी पीछे हैं. क्यूएस रैंकिंग के जो मानक हैं वह काफी कठिन हैं. क्यूएस रैंकिंग जिस पब्लिकेशंस में शोध प्रकाशित होने पर विश्वविद्यालयों को तवज्जो देता है, हमारे यहां उसके अलावा दूसरे कई और प्रकाशनों में शोध प्रकाशित होने पर शिक्षकों को प्रमोशन का लाभ दिया जाता है. इसके लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के सभी विश्वविद्यालयों को क्यूएस रैंकिंग में लाने के लिए एक मानक तय करे.'
प्रोफेसर टंडन ने बताया कि 'इसके अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालयों को जो फंड मिलता है. उसकी तुलना में राज्य विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त फंड नहीं होता, जिसके कारण वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरी चीजों को वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालयों के बराबर नहीं कर पाते हैं. मौजूदा समय में राज्य विश्वविद्यालयों के पास अपने शिक्षकों व कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पूरा फंड नहीं मिलता है, वहीं इसके अलावा एक सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षक छात्र अनुपात काफी खराब है. उन्होंने बताया कि हमारे राज्य विश्वविद्यालय राज्य सरकार के नियमों के अधीन आते हैं, ऐसे में यहां पर शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है, जबकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में शिक्षकों की भर्ती व उनके चयन प्रक्रिया काफी लचीली होती है.'