लखनऊ:उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के मरीजों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए जिलों में कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) की मदद ले रही है. सीडीआर का इस्तेमाल पुलिस अपराधों की जांच में करती है. अधिकारियों ने बताया कि कुछ मरीज जानबूझ कर अपनी जानकारी छिपाने का प्रयास कर रहे हैं या फिर उपचार के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को गलत एवं अपूर्ण सूचना दे रहे हैं. इससे उनके संपर्कों का पता लगाना मुश्किल हो रहा है. इस वजह से सीडीआर का उपयोग किया जा रहा है.
कोरोना संक्रमित मरीज को उनकी कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स की मदद से ट्रेस करने की पुलिस की आलोचना हुई थी. पुलिस ज्वाइंट कमिश्नर नवीन अरोड़ा ने बताया कि सीडीआर की मदद से उन लोगों पर फोकस किया जा सकता है, जिनके संपर्क में कोई भी कोरोना मरीज आया था.
जानकारी छिपाकर करा रहे कोरोना जांच
राजधानी में अपनी जानकारी को छिपाकर कोविड-19 संक्रमण की जांच कराने वालों की संख्या सैकड़ों में हैं. इसको लेकर बीते दिनों जिला प्रशासन ने भी चिंता जताई थी. लखनऊ डीएम ने ट्वीट कर बताया था कि लखनऊ में भारी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो अपनी जानकारी गलत बताकर कोविड-19 संक्रमण की जांच करा रहे हैं. वहीं तमाम ऐसे लोग भी हैं, जो कई बार अलग-अलग जगह कोविड-19 संक्रमण की जांच करा रहे हैं.
'सीडीआर पर खड़े हो रहे सवाल'
पुलिस द्वारा सीडीआर की मदद से संक्रमितों की पहचान करने को लेकर बीमारी को छिपाने वाले लोगों की निजता का हनन होने पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं. हालांकि अधिकारियों ने इसका खंडन किया है. इस बारे में ज्वाइंट कमिश्नर नवीन अरोड़ा का कहना है कि हम अपराधियों को ट्रेस करने के लिए सीडीआर का प्रयोग करते हैं जो कि कानूनी है. ऐसे में जो लोग कोरोना की जांच करा रहे हैं और अपनी बीमारी को छिपा रहे हैं, वह आपदा प्रबंधन एक्ट व महामारी अधिनियम (188) के तहत आरोपी हैं. ऐसे में बीमारी के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए हम सीडीआर का प्रयोग कर सकते हैं और इसके लिए बाकायदा शासन से परमिशन ली गई है.
'कई लोगों को किया गया ट्रेस'
ज्वाइंट कमिश्नर ने बताया कि अभी तक हमने 1 लाख 89 हजार 434 लोगों की कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग करके स्वास्थ्य विभाग को दी है, जिनमें से 12 हजार 390 लोग कोरोना पॉजिटिव हैं. वहीं 1 लाख 77 हजार 44 लोग कोरोना संक्रमित मरीज के संपर्क में आने वाले हैं.