लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) अब पूरी तरह से विधानसभा चुनाव 2022 (assembly election 2022) की तैयारी में जुट गई है. एक तरफ जहां बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) अपने संगठन तंत्र को बूथ स्तर तक मजबूत करने पर सक्रियता से काम कर रही है. वहीं चुनावी रणनीति पर भी मंथन किया जा रहा है. सभी तरह के कील कांटे दुरुस्त किए जा रहे हैं, जिससे हर मोर्चे को मजबूत किया जा सके.
100 सीटों पर मुस्लिम समाज को टिकट देने की रणनीति
बसपा के उच्च स्तरीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बहुजन समाज पार्टी ने 2022 चुनाव में सत्ता पर काबिज होने को लेकर एक बड़ा मास्टर प्लान तैयार किया है. इस मास्टर प्लान के अनुसार उत्तर प्रदेश में एआईएमआईएम (All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की तरफ से 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के एलान के बाद बसपा ने यह रणनीति बनाई है. इसके अनुसार बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) की सुप्रीमो मायावती (Mayawati) उत्तर प्रदेश की करीब 100 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर मुस्लिम समाज को उम्मीदवार बनाने पर ध्यान दे रही हैं.
ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम समीकरण पर फोकस
दरअसल, मुसलमान के साथ-साथ मायावती ने जिस प्रकार से ब्राह्मण वर्ग को साथ लाने की कवायद शुरू की है और प्रबुद्ध सम्मेलन किए जा रहे हैं, इसके अलावा बसपा का कैडर बेस दलित वोट बैंक है, वह अगर एक साथ होता है तो स्वाभाविक रूप से बसपा को इसका फायदा हो सकता है. इसीलिए मायावती इस समीकरण के सहारे सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने की रणनीति बनाने को लेकर सक्रिय हैं.
सफल हो सकती है मायावती की ये रणनीति, सपा को हो सकता है नुकसान
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रविकांत कहते हैं कि मायावती निश्चित तौर पर मायावती बहुत अच्छी रणनीतिकार हैं. उन्होंने जिस तरीके से संकेत दिए हैं कि 100 से अधिक सीटों पर ब्राह्मणों को टिकट देने जा रही हैं. करीब इतने ही मुसलमानों को टिकट देने की बात हुई है. हम लोगों ने देखा है कि जिस तरीके से उन्होंने बिठूर विधानसभा सीट पर एक यादव उम्मीदवार उतारा है, अभी तो उसके नाम की घोषणा कर दी है, तो इससे लग रहा है कि वह यादव समाज को भी प्राथमिकता देंगी. मुझे लगता है कि मायावती जो यह रणनीति बना रही हैं, वह बीजेपी से न लड़कर समाजवादी पार्टी से सीधे मुकाबले को लेकर है. उनको मालूम है कि इस समय समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) जमीन पर दिखाई दे रही है. वहीं मुख्य संघर्ष पर भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के साथ हैं, तो इसलिए मायावती बिना किसी संघर्ष के बिना जमीन पर उतरे अपने कुशल रणनीति के माध्यम से चुनावी जंग को जीतने के लिए प्रयासरत हैं और इसमें जो उनकी यह रणनीति है. यादव, ब्राह्मण, मुस्लिम को प्रेफरेंस देने की, तो मुझे लगता है निश्चित तौर पर उनके लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन अखिलेश यादव के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकती है. इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) को भी जरूर हो सकता है.
ओवैसी फैक्टर को कम करने की कोशिश
यही वजह है कि मायावती (Mayawati) के बारे में यह कहना रहा है कि बीजेपी (BJP) की बी टीम की तरह काम करती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में ओवैसी के आने के बाद उन्होंने सबसे अधिक मुसलमानों को टिकट देने की की बात कही थी, तो वह कहीं न कहीं ओवैसी के उस फैक्टर को कम करने की कोशिश है, लेकिन ओवैसी के बारे में जितना मैं समझता हूं, उसमें यह है कि शहरों का जो नौजवान मुसलमान है वह ओवैसी की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है. उसका यह कहना है कि जब जाटवों की पार्टी हो सकती है, ब्राह्मणों की पार्टी हो सकती है, यादवों की पार्टी हो सकती है, तो मुसलमानों की पार्टी क्यों नहीं हो सकती है. ओवैसी जीते या हारे हमें तो और ओवैसी को वोट ही करना है, तो यह जो मुसलमान नौजवानों में यह जो चेतना आई है, वह उत्तर प्रदेश में ओवैसी को थोड़ा बहुत वोट जरूर देगी. उससे नुकसान सपा का होगा और मायावती की यह रणनीति जो बना रही है, सबसे अधिक सीटों पर मुसलमानों को उम्मीदवार बनाने की, तो मुझे लगता है कि यह सीधे हमला समाजवादी पार्टी की रणनीति पर है.
सपा से सीधे मुकाबले की रणनीति
प्रो. रविकांत कहते हैं कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुकाबले वह अपने आप को देख रही हैं. वह हवा का रुख बदलने की रणनीति बना रही हैं, जो इस समय समाजवादी पार्टी के साथ दिख रहा है. वह हवा का रुख बदलने को लेकर इस प्रकार की रणनीति बनाने पर ध्यान दे रही हैं. उत्तर प्रदेश में जो जाटव समाज के करीब 11.5 फीसद वोट हैं, वह बीएसपी के साथ जुड़ा हुआ है, वह कहीं जाता नहीं है. और अगर वह यादव को टिकट देती हैं, तो यादव जुड़ेगा और निश्चित रूप से वह सपा को हराने का काम करेंगे. उनके जीतने के चांस बन सकते हैं तो यह देखने-देखने लायक रणनीति है.
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