लखनऊ:उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए 7 सीटों पर उपचुनाव में एक भी सीट ना जीत पाने के बाद बहुजन समाज पार्टी ने अब यूपी की सियासत में एक नई तरह की चाल चलने का काम किया है. बसपा के बेस वोट बैंक दलित के साथ अति पिछड़ा समीकरण को दुरुस्त करने को लेकर मायावती ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर पूर्वांचल की पिछड़ी जाति से आने वाले भीम राजभर को बैठा दिया है.
मायावती ने इस समीकरण पर किया फोकस दलित के साथ अति पिछड़ी जातियों का समीकरण साधने में जुटी बीएसपीमायावती ने इस फैसले के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि बहुजन समाज पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में दलित मुस्लिम समीकरण के बजाय दलित और अति पिछड़े वोट बैंक के सहारे सत्ता की कुर्सी तक काबिज होना चाहती है. यही कारण है कि पूर्वांचल में अति पिछड़ी जातियों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने के उद्देश्य से मायावती ने पार्टी के पुराने सिपाही भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है और दलित मुस्लिम समीकरण पर फिट बैठ रहे पूर्व सांसद मुनकाद अली की प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से विदाई कर दी है.
मुस्लिम वर्ग का साथ न मिलने पर मायावती ने किया है ये प्रयोग
यूपी में मुस्लिम वोटों को लेकर पिछले काफी समय से राजनीति होती रही है. 7 सीटों पर उपचुनाव के दौरान जब बहुजन समाज पार्टी को मुस्लिम समाज का साथ मिलता हुआ नहीं नजर आया तो फिर मायावती को मजबूरन यह बड़ा रणनीतिक फैसला करना पड़ा. अब देखने वाली बात यह होगी कि मायावती का यह नया सियासी समीकरण कितना सफल होता है और 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती को कितनी सीटें मिल पाती हैं.
सभी दल पिछड़ों के वोट के सहारे सत्ता तक चाहते हैं पहुंचना
यूपी में राजभर समाज को लेकर भी राजनीतिक दल अपने-अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए लगातार प्रयास भी कर रहे हैं. प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने के लिए चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या समाजवादी पार्टी हो या फिर बहुजन समाज पार्टी सभी दल राजभर समाज को तवज्जो दे रहे हैं.
ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन ने भाजपा सरकार बनाने में अदा की थी महत्वपूर्ण भूमिका
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अति पिछड़ा वोट बैंक को सहेजने के लिए काम किया था और पूर्वांचल की तमाम सीटों पर अच्छी पकड़ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. यही कारण है कि पूर्वांचल की तमाम सीटों पर बीजेपी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के गठबंधन को सीटें मिली और भाजपा को सरकार बनाने में एक बड़ी सफलता मिली थी.
सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के चलते हटाए गए थे ओमप्रकाश राजभर
बाद में तमाम मांगों को लेकर और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की वजह से ओमप्रकाश राजभर को मंत्री पद से हटा दिया गया था. इसके बाद राजभर समाज की नाराजगी खासकर अति पिछड़ी जातियों की नाराजगी को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजा. अनिल राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया और राजभर समाज के तमाम अन्य लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर बीजेपी ने संदेश दिया कि भाजपा राजभर समाज की चिंता करती है और सबको सरकार में बराबर की भागीदारी दे रही है.
पिछड़ों के वोट पर नजर, सोची समझी रणनीति के सहारे सत्ता तक पहुंचने की कवायद
उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक वोट बैंक वाले पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए बहुजन समाज पार्टी ने अति पिछड़ी जाति से आने वाले भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. बहुजन समाज पार्टी के सूत्र बताते हैं कि मायावती की कवायद के पीछे पीछे एक सोची समझी राजनीति है. मायावती पूर्वांचल की अति पिछड़ी जातीयों के वोट बैंक को सहेज कर सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचना चाहती हैं. 22 फीसद दलित वोट में भले मायावती का एकाधिकार ना हो, लेकिन दलितों का समर्थन उन्हें मिलता रहा है. इसी वोट बैंक के सहारे मायावती राजनीति करती रही हैं.
गैर यादव समीकरण दुरुस्त करने की रणनीति
मायावती की कोशिश है कि करीब 54 फीसदी पिछड़ी जातियों के वोट बैंक में गैर यादव जातियों को पार्टी के पक्ष में लामबंद किया जाए और सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचा जा सके. यही कारण है कि अति पिछड़ी जाति से आने वाले राजभर समाज के नेता को प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.
ब्राह्मण समीकरण दुरुस्त करने का सतीश चंद्र मिश्रा करते हैं प्रयास
इसके साथ ही मायावती ब्राह्मण समीकरण को सतीश चंद्र मिश्रा के सहारे दुरुस्त करना चाहती हैं. उन्होंने इस समाज को पार्टी से जोड़े रखने की जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्रा को दी है. सवर्ण वोट बैंक में मायावती ब्राह्मणों को साथ लेकर और दलित पिछड़ा वोट बैंक की राजनीति को आगे बढ़ा रही हैं. देखने वाली बात यह होगी कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की यह नई चाल कितना असर डालती है और बसपा को कितनी सीटें मिल पाती हैं.
'मायावती की ये रणनीति नई तरह की है'
राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि मायावती की यह नई तरह की रणनीति है कि वह दलित मुस्लिम समीकरण के बजाय इस बार दलित और पिछड़े समीकरण को दुरुस्त करके सियासत करना चाह रही हैं. उपचुनाव में मायावती को लग रहा है कि मुस्लिम समाज का उन्हें पूरा साथ नहीं मिला है और इसी कारण उन्होंने यह बड़ा फैसला किया है. यही कारण है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी को हर स्तर पर हराने की बात कही है. यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह अति पिछड़ों को भी पार्टी से जोड़ेंगी.