लखनऊ : आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर सत्ता और विपक्ष के साथ तमाम पार्टियां एक मंच पर आ रही हैं. विपक्षी दल बीजेपी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंकने में जुट गए हैं तो बीजेपी भी सत्ता पर फिर से आसीन हो सके, इसके लिए सहयोगी दलों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में तेजी से जुट गई है. सत्ता पक्ष या विपक्ष के गठबंधन में दर्जनों दल साथ हैं. राष्ट्रीय स्तर पर दो दलों के किसी भी गठबंधन के साथ न आने को लेकर भी चर्चा खूब हो रही हैं. इनमें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सत्ता पर चार बार काबिज रही बहुजन समाज पार्टी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है. बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पहले ही अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था, लेकिन उन्हें शायद ही ऐसी उम्मीद रही होगी कि जब विपक्ष गठबंधन करेगा तो उस समय उन्हें एक बार भी नहीं पूछेगा. अब इसे मायावती का पक्का इरादा कहें या फिर मजबूरी, फिलहाल अब उन्हें चुनाव मैदान में अकेले ही उतरना होगा.
BSP Strategy : लोकसभा चुनाव अकेले लड़ना मायावती का स्वैग नहीं, मजबूरी
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है. मायावती के इस निर्णय की चर्चा सियासी गलियारों में खूब हो रही है. जानकार बताते हैं कि मायावती के इस ऐलान के पीछे असल मायने कुछ और ही हैं.
लोकसभा में प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 10 सीटों पर चुनाव जीता था वर्तमान में पार्टी के नौ सांसद हैं. गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी की संसद सदस्यता खत्म हो चुकी है. मायावती की पार्टी ने ये 10 सीटें पिछले लोकसभा चुनाव में तब जीती थी जब धुर विरोधी रही समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. इसके बाद जब गठबंधन टूटा और मायावती ने 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ने का फैसला लिया तो 403 सीटों में पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत पाई. ऐसे में कहा जा सकता है कि मायावती को लोकसभा चुनावों में पिछला इतिहास दोहरा पाना काफी मुश्किल हो सकता है, क्योंकि विधानसभा चुनाव अकेले लडकर वे खुद को आजमा चुकी हैं.