लखनऊ: चार-चार बार बसपा यूपी की सत्ता में काबिज हुई. यह सिंघासन न सिर्फ उसने गठबंधन की बदौलत हासिल किया, बल्कि खुद के दम पर भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. राज्य में वर्षों से सत्ता और मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में रही बसपा का साल 2021 उसकी अस्मिता पर भारी पड़ गया. उसमें नेताओं का इस कदर पलायन हुआ कि पार्टी राज्य में हाशिए पर चली गई.
राज्य में यूं घटता गया पार्टी का कद
वर्ष 2007 में बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. वर्ष 2012 में साइकिल की रेस में हाथी को मात खानी पड़ गई. वहीं 2017 के चुनाव में मोदी लहर ने पार्टी से मुख्य विपक्षी दल का भी तमगा छीन लिया. इधर भाजपा सरकार की गरीबों के लिए चलाई गईं कई महत्वपूर्ण योजनाओं ने जमीनी स्तर पर प्रभाव छोड़ा, ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक बसपा के दलित वोटों में भी भाजपा की सेंध के दावे कर रहे हैं. मगर, यह कितना सच है, यह वर्ष 2022 के चुनाव परिणाम ही बताएंगे, फिलहाल बसपा का अपना प्रभाव कायम रखने के लिए जद्दोजहद जारी है.
अपनों ने छोड़ा साथ, सिर्फ तीन विधायक बचे
वर्ष 2017 में बसपा के 19 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं 2021 में ये विधायक वर्ष 2022 चुनाव के लिए दूसरी पार्टी में भविष्य तलाशने लगे. ऐसे में अनुशासन हीनता में कई विधायकों को पार्टी प्रमुख मायावती ने निष्कासित कर दिया, तो कई विधायकों ने बसपा प्रमुख पर बाबा साहेब और कांशीराम के मिशन से भटकने का आरोप लगाकर किनारा कर लिया. ऐसे में 19 विधायकों वाली पार्टी में अब सिर्फ तीन विधायक ही बचे हैं.
बसपा अब सुभासपा से भी छोटी पार्टी बनी
बसपा 2021 में क्षेत्रीय पार्टियों से भी छोटी पार्टी में शुमार हो गई है. वर्तमान में अपना दल-एस के 9 विधायक हैं. सुभासपा के 4 विधायक हैं. वहीं वर्षों से यूपी में हाशिए पर चल रही कांग्रेस भी अब 6 विधायकों के साथ बसपा से आगे है. बसपा के पास अब तीन विधायक ही बचे हैं.
बसपा में बचे विधायक
- श्याम सुंदर शर्मा
- उमाशंकर सिंह
- आजाद अरिमर्दन