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बसपा-शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन, सियासी भविष्य संवारने की कवायद

यूपी मे बहुजन समाज पार्टी (bahujan samaj party) की पिछले कुछ सालों में जिस प्रकार से सियासी ताकत कमजोर हुई है. उसको देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपना सियासी भविष्य बेहतर करने को लेकर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया हैं. यूपी में सिख आबादी करीब आठ लाख है, जिससे स्वभाविक रूप से बसपा की स्थिति मजबूत हो सकती है.

बसपा-शिरोमणि अकाली दल गठबंधन
बसपा-शिरोमणि अकाली दल गठबंधन

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Published : Jun 12, 2021, 2:04 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (bahujan samaj party) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती 2022 के विधानसभा चुनाव (Up Assembly Elections 2022) से पहले हर स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रही हैं. इसके साथ ही 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती पंजाब में भी अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं. खास बात यह है कि अब बहुजन समाज पार्टी ने पंजाब की शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन कर लिया है.

यूपी में सिख आबादी की स्थिति
उत्तर प्रदेश में सिख आबादी करीब आठ लाख बताई जा रही है. वहीं प्रदेश के लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बरेली, लखनऊ व अन्य कुछ जिलों में सिख समुदाय की तादाद अच्छी खासी मानी जाती है. ऐसे में पंजाब में हुए गठबंधन का असर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 में भी होने की संभावना जताई जा रही है. क्योंकि इस वोट बैंक में शिरोमणि अकाली दल का प्रभाव रहता है और अगर वहां के नेता यहां चुनाव के प्रचार के लिए आते हैं, तो स्वभाविक रूप से बहुजन समाज पार्टी की स्थिति मजबूत हो सकती है.

सियासी भविष्य मजबूत करने के लिए गठबंधन
दरअसल, बहुजन समाज पार्टी की पिछले कुछ सालों में जिस प्रकार से सियासी ताकत कमजोर हुई है, उसको देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपना सियासी भविष्य बेहतर करने को लेकर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया हैं. दरअसल, पिछले करीब एक दशक से बहुजन समाज पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है और उसके तमाम बड़े नेता उसका साथ छोड़ रहे हैं, तो पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए मायावती ने भी पार्टी के तमाम बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाते हुए उन्हें निष्कासित कर दिया है.

पंजाब से गठबंधन करके मायावती कर रही हैं मजबूत होने की कोशिश
ऐसे में मायावती उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बाहरी राज्यों में भी बसपा की पकड़ और मजबूत करने को लेकर गठबंधन की कवायद कर रही हैं. करीब ढाई दशक बाद पंजाब में अपनी सियासी ताकत परखने और उसे मजबूत करने के उद्देश्य से मायावती ने शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया हैं. वर्ष 1996 में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन किया था, जिसके बाद अब एक बार फिर से गठबंधन किया है.

पंजाब के 23 फीसद दलित वोट बैंक के सहारे मिल सकता है गठबंधन का फायदा
उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में भी अपनी सियासी ताकत कमजोर होते हुए देखकर मायावती पिछले काफी समय से परेशान है. ऐसे में वह पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन के सहारे 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना चाहती हैं. जानकारी के अनुसार पंजाब में करीब 23 फीसद दलित वोट है और तमाम ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां दलितों की संख्या काफी अधिक है. ऐसे में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन करने से बहुजन समाज पार्टी को काफी फायदा हो सकता है और स्वाभाविक रूप से बसपा का सियासी भविष्य बेहतर होगा. इन्हीं तमाम कवायद के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन कर रही हैं.

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बसपा को 18 से 20 सीट मिलने की कयावद
जानकारी के अनुसार पंजाब में बहुजन समाज पार्टी को शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में 18 से 20 सीटें मिल सकती हैं और इन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी जीत भी दर्ज करने की स्थिति में नजर आ सकती है. दरअसल, जिन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में लेने की बातचीत कर रही है या उनकी बातचीत हुई है, उसके अनुसार जो दलित बहुल सीटें हैं उन पर बहुजन समाज पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी. इसे स्वाभाविक रूप से गठबंधन को फायदा होगा. पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन करके बसपा पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को कमजोर करने की कोशिश करेगी.

बसपा से गठबंधन का दोनों दलों को हो सकता है फायदा
शिरोमणि अकाली दल का पहले भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन था, लेकिन केंद्र में बीजेपी सरकार द्वारा कृषि कानून लाए जाने के बाद से शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन समाप्त हो गया था. जिसके बाद अब शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है.

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यूपी में छोटे मोर्चे के साथ गठबंधन की कवायद जारी
वहीं उत्तर प्रदेश में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा छोटे दलों के सहारे चुनाव मैदान में उतरना चाहती है. उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ बसपा के गठबंधन की कवायद चल रही है. बसपा और मोर्चे से जुड़े कई नेताओं की मुलाकात भी हुई है और कोशिश है कि जल्द ही इस गठबंधन को लेकर फैसले हो सकते हैं. इसके साथ ही इस गठबंधन के साथ एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी के भी साथ आने के संकेत हैं. यही नहीं पहले भी बिहार में भी यह कवायद हो चुकी है. अगर यह सभी दल मोर्चा के रूप में एक साथ होते हैं तो स्वाभाविक रूप से बसपा उत्तर प्रदेश में भी कुछ बेहतर करने की स्थिति में होगी.

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2007 के बाद कमजोर हुई बसपा
यूपी में 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा वर्तमान समय में यूपी में काफी संकट का सामना कर रही है. बसपा के पास इस समय सिर्फ 7 विधायक बचे हैं और बाकी 11 विधायक किसी न किसी कारण से पार्टी से बागी हो चुके हैं. मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया है. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में बेहतर करने के लिए छोटे दलों से गठबंधन एक बड़ा विकल्प बन सकता है.

बसपा मजबूत होने के लिए कर रही है गठबंधन
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से पिछले एक दशक से ज्यादा समय से बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश ही नहीं कई अन्य राज्यों में सिमट गई है. उसका सियासी भविष्य संकट में नजर आ रहा है. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन करती है, तो स्वाभाविक रूप से इसका फायदा मिलेगा. पंजाब में शिरोमणि अकाली दल काफी मजबूत स्थिति में है और अगर बसपा के साथ गठबंधन होता है, तो जो दलितों का करीब 23 से 24 फीसद वोट बैंक है, वह साथ में आने से काफी राहत मिल सकती है. इससे दोनों दलों को फायदा होगा. ऐसे में मायावती का यह शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन करना स्वाभाविक रूप से दोनों दलों को मजबूत करेगा. निश्चित रूप से इस से बसपा और मजबूत होगी, जो पिछले काफी समय से लगातार कमजोर होती जा रही है.

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