लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने का स्वप्न देख रही कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की स्थिति बिल्कुल भी सही नहीं कही जा सकती. इस बार के निकाय चुनाव में इन दोनों पार्टियों को राजधानी लखनऊ में ही 110 वार्डों के प्रत्याशी तक खोजे नहीं मिले. बहुजन समाज पार्टी जहां 88 सीटों पर अपने पार्षद प्रत्याशी उतार पाई है, वहीं कांग्रेस की तो हालत प्रत्याशी उतारने के मामले में बसपा से भी ज्यादा खस्ता है. कांग्रेस को सिर्फ 69 प्रत्याशी ही पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए खोजे मिले हैं, जबकि पार्टी की तरफ से लखनऊ में ही 110 प्रभारी तैनात कर दिए गए. बहुजन समाज पार्टी का तर्क है कि प्रत्याशियों की कमी नहीं थी, लेकिन पार्टी ने ऐसे ही प्रत्याशियों को टिकट दिया जो जीतने लायक थे. जहां हम कमजोर महसूस कर रहे थे वहां पर निर्दलीय को समर्थन दिया है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि पर्चे खारिज होने के चलते प्रत्याशी कम हो गए हैं. पार्टी के पास उम्मीदवारों की कमी नहीं है.
बहुजन समाज पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य थी, लेकिन 2019 में बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐसा दांव खेला कि पार्टी की सांसद संख्या सीधे शून्य से दहाई तक पहुंच गई. दरअसल, बसपा सुप्रीमो ने 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा और इसका सीधा फायदा बसपा को मिला. बसपा के 10 सांसद जीतने में कामयाब हुए, लेकिन समाजवादी पार्टी को बसपा से गठबंधन का फायदा हुआ न ही नुकसान. पार्टी के सिर्फ पांच सांसद जीतने में कामयाब हो पाए. इसके बाद दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया. 2022 का विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी ने अपने दम पर लड़ा और इसमें पार्टी की हैसियत सामने आ गई. सभी सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी अब तक के सबसे घटिया दौर से गुजरी. बहुजन समाज पार्टी का सिर्फ एक विधायक ही चुनाव जीतने में सफल हो पाया. इसके बाद उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को लेकर तमाम सवाल भी खड़े होने लगे. कहा यहां तक जाने लगा कि अब बहुजन समाज पार्टी का राजनीति में धीरे-धीरे अस्तित्व ही खत्म होता जा रहा है, हालांकि बसपा मुखिया मायावती यह बिल्कुल भी स्वीकार करने को तैयार नहीं. निकाय चुनाव में इस बार बसपा ने पूरे दमखम के साथ अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. पार्टी की कमजोरी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जहां बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का आवास भी है और कार्यालय भी, यहां 110 सीटों के पार्षद प्रत्याशी तक बहुजन समाज पार्टी को खोजे नहीं मिल पाए. आलम यह है कि पार्टी सिर्फ 88 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारने में कामयाब हो पाई है. ऐसे में यह कहना मुश्किल नहीं है कि अब बहुजन समाज पार्टी का कोर वोटर भी छिटकने लगा है. यही वजह है कि बीएसपी से कोई प्रत्याशी बनने तक को तैयार नहीं हो रहा है.