लखनऊ : बहादुरी को अब रोजगार की दरकार है, क्योंकि साहब खाली सम्मान से पेट नहीं भरता है और न ही परिवार चलता है. ऐसा ही कुछ कहना है राजधानी लखनऊ के इस बहादुर रियाज का जिसने महज 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची को बचाते वक्त अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिया था. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस बहादुर बच्चे को वीरता पुरस्कार से सम्मानित भी किया था.
सड़क किनारे चाय के ठेले पर दोनों हाथ और एक पैर से वंचित युवक जब चाय के भगौने को अंगीठी पर रखता है तो लोग बरबस ही उसकी और देखने लगते हैं. लेकिन जब उससे बात करते हैं तो वह कौतूहल दुखद आश्चर्य में बदल जाता है. पहली नजर में उसे देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि किसी की जान बचाने में दिव्यांग हो जाने वाला मोहम्मद रियाज राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया था.
वहीं तमाम राजनेताओं ने इस बहादुर बच्चे से वादा किया था कि तुम्हारी अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छी नौकरी भी दिलाई जाएगी. लेकिन आज वही 8 साल का बहादुर बच्चा अब 21 साल का हो चुका है, लेकिन हालात जस के तस हैं. जिसके चलते बेचारा रियाज एक चाय का ठेला लगाकर किसी तरह अपना परिवार चलाने को मजबूर है.