लखनऊः राजधानी लखनऊ में आज से जहां छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल भुलैया सहित भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारकों को खोल दिया गया है. वहीं रूमी गेट के पास बने हुए ऐतिहासिक घंटाघर को अब अतिक्रमण और असामाजिक तत्वों से भी संरक्षित किया जाएगा.
लखनऊ के ऐतिहासिक घंटाघर के चारों तरफ बनेगी बाउंड्री वॉल, पर्यटकों को मिलेगी सुविधा
लखनऊ के हुसैनाबाद ट्रस्ट ने ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर को सजाने के लिए एलडीए के अधिकारियों पत्र भेजा है. ट्रस्ट ने पत्र में कहा है कि घंटाघर परिसर चारों तरफ से खुला है, जिससे यहां आवारा जानवर पहुंचकर गंदगी फैलाते हैं. इससे सैलानियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से इसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण को एक पत्र भी भेजा गया है. वर्तमान में घंटाघर पर चारों तरफ से खुला हुआ है, जिसके कारण आवारा पशु और असामाजिक तत्व की मौजूदगी की वजह से पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं. वहीं आवारा पशु गंदगी भी फैलाते हैं. वहीं अब हुसैनाबाद ट्रस्ट इस ऐतिहासिक धरोहर को सजाने के लिए एलडीए के अधिकारियों पत्र भेजा गया है. बता दें इस ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 1881 में नवाब नसीरुद्दीन ने किया था.
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ऐतिहासिक घंटाघर किस चारों तरफ बनेगी बाउंड्री वॉल
राजधानी लखनऊ में बड़े इमामबाड़े के पास में ऐतिहासिक घंटाघर है. वहीं यह टावर विक्टोरियन गोथिक शैली की वास्तुकला का शानदार उदाहरण भी है, लेकिन इन दिनों आवारा पशुओं और असामाजिक तत्वों की वजह से इस ऐतिहासिक घंटाघर को देखने के लिए पहुंचने वाले लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. जिसके लिए हुसैनाबाद ट्रस्ट ने एडीए को एक पत्र लिखा है कि इसके चारों तरफ बाउंड्री वॉल का निर्माण किया जाए. जिससे कि यहां साफ-सफाई और पर्यटकों के लिए सुरक्षित माहौल मिल सके.
क्या है घंटाघर का इतिहास
पुराने लखनऊ में ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण की शुरुआत 1881 में नवाब नसीरुद्दीन कराया था. ये 1887 में बनकर तैयार हुई. उस दौरान घंटाघर की लागत 174000 रुपये आई थी. इस टावर की लंबाई 221 फीट है. बताया जाता है कि लंदन की बिग बेन के तर्ज पर इस घंटाघर को बनाया गया था. वहीं इसकी सुईया भी लंदन के लुईगेट दिल से लाई गई थीं. वहीं इस घड़ी में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्जे आज ही वैसे हैं. इस पर मौसम की विपरीत परिस्थितियों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.