लखनऊ: आज का यह दौर कंप्यूटर, ईमेल, मोबाइल, इंटरनेट का है, लेकिन डिजिटल युग में भी लोगों का पुस्तकों से मोहभंग नहीं हो रहा है. लखनऊ विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय भाषा महोत्सव का आयोजन किया गया. इस भाषा महोत्सव में 18 प्रदेशों के साहित्यकार और विद्वान जुटे. इस मौके पर लखनऊ विश्वविद्यालय में पुस्तक मेला भी आयोजित हुआ. तमाम प्रकाशक समूहों ने यहां पर स्टाल लगाए हैं, जिस पर विभिन्न तरह की पुस्तकें मिल रही हैं.
लखनऊ विश्वविद्यालय में चल रहा पुस्तक मेला. छात्र हो रहे आकर्षित
लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र इन पुस्तकों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. जो उनके विषय की पुस्तकें हैं ,उन्हें तो वे ले ही रहे हैं साथ ही सामाजिक और धार्मिक मुद्दों से जुड़ी पुस्तकों की तरफ भी युवाओं का आकर्षण साफ दिख रहा है. छात्र इस पुस्तक मेले में अपनी मनपसंद पुस्तकें खरीद रहे हैं.
शाम में किताबें पढ़ना अच्छा लगता है
लखनऊ विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन फाइनल ईयर की छात्रा प्रतिभा पांडेय कहती हैं कि जो चीजें पुस्तकों में हैं वह फोन पर नहीं मिलती हैं और फोन के तमाम साइड इफेक्ट होते हैं. पुस्तकों को पढ़ने का मजा ही कुछ और है. प्रतिभा पांडेय कहती हैं कि उनका बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का शौक रहा है. शाम में बैठकर पुस्तकें पढ़ना उन्हें अच्छा लगता है. उनका सब्जेक्ट हिंदी लिटरेचर और एंथ्रोपोलॉजी है. उन्होंने वेश्यावृत्ति पर दो पुस्तकें ली हैं. उनको आगे वेश्यावृत्ति पर रिसर्च करनी है क्योंकि वैश्याएं भी समाज का एक हिस्सा होती हैं.
पुस्तकों को पढ़ने के लिए चाहिए ज्ञान और समझ
पुस्तक मेले में पुस्तकें खरीदने आए विश्वनाथ पांडेय ने बताया कि उन्होंने तीन पुस्तकें खरीदी हैं. पहली पुस्तक काया के वन में दूसरी पुस्तक एक सन्यासी योद्धा, जो उत्तराखंड के लोक देवता पर आधारित है और तीसरी पुस्तक मिथिलेश्वर की खरीदी है. वे कहते हैं कि पुस्तकों को पढ़ने के लिए ज्ञान और समझ चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें प्रिंट मीडिया में आना पड़ेगा. बाकी सूचनाएं और जानकारी या अपडेट तो नेट और गूगल पर मिल जाएगा, लेकिन यह टिकाऊ नहीं होता है. स्थाई ज्ञान चाहिए तो पुस्तकें पढ़ना पड़ेगा.