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काले पहाड़ ने लखनऊ को दिया वर्तमान स्वरूप, जानें इतिहास

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Published : Jan 10, 2021, 8:38 PM IST

यूपी के लखनऊ का इतिहास बहुत पुराना है. लखनऊ की पुरानी इमारतें देश ही नहीं दुनिया में भी प्रचलित हैं. आज ईटीवी भारत आपको लखनऊ के इतिहास से रूबरू करा रहा है.

लखनऊ का काला पहाड़
लखनऊ का काला पहाड़

लखनऊः नवाबों की नगरी लखनऊ में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन इमारतों को देखने के लिए देश ही नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोग आते हैं. इन इमारतों को बनाने के लिए नवाबों के पास कहां से धन आया, यह बात शायद ही बहुत कम लोग जानते हों? ईटीवी भारत आज आपको बताएगा कि आखिर इन ऐतिहासिक इमारतों को बनाने के लिए नवाबों के पास दौलत कहां से आई? नवाबों की नगरी में बनी इमारतों में कई रहस्य भी छिपे हैं. इतिहासकारों की मानें तो राजधानी स्थित काला पहाड़ बहुत ऐतिहासिक जगह है. यहीं से नवाबों को बेहिसाब खजाना मिला था. खजाना मिलने के बाद नवाबों ने लखनऊ में यह ऐतिहासिक इमारतें बनवाई थीं.

लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 ईसवी में की थी.

1217 हिजरी में बनाई गई थी मस्जिद
राजधानी के खिन्नी चौराहा स्थित बहुत ही ऐतिहासिक जगह काला पहाड़ है. मौजूदा समय में काला पहाड़ के बगल में श्मशान घाट बना है. साथ ही दूसरी ओर बहुत बड़ी झील भी है. काला पहाड़ एक टीला नुमा बना है. इस टीले पर एक मस्जिद बनी है. बताया जाता है कि इसका निर्माण 1217 हिजरी में हुआ था. टीला काले रंग के मोटे पत्थरों से बना हुआ है. इस टीले पर मौजूदा समय में बारादरी और मजार भी बनी हुई है. यहां सैकड़ों साल पुराना इमली का पेड़ और कुआं है. कुआं पूरी तरीके से बंद कर दिया गया है.

1775 में करवाया था निर्माण
बताया जाता है लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 ईसवी में की थी. नवाबों की नगरी में बड़े इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है. इस इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसिफुद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत करवाया था. यह विशाल गुंबद नुमा साल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है. यह एक अनोखी भूलभुलैया है. इस इमामबाड़े में असफी मस्जिद भी है. मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनार हैं. बड़े इमामबाड़े के बाहर ही रूमी दरवाजा बना हुआ है. बताया जाता है नवाब आसिफुद्दौला ने यह दरवाजा 1782 ईसवी में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके.

किताब लखनऊ की कब्र में है इसका जिक्र
इतिहासविद योगेश प्रवीन बताते हैं कि एक किताब बरामद हुई थी, जिसका नाम 'लखनऊ की कब्र' था. उस किताब में यह जाहिर किया गया कि नवाब आसिफुद्दौला फैजाबाद से बहुत अधिक दौलत नहीं लेकर आए थे. किताब के मुताबिक, जब उनका उनकी मां से झगड़ा हो गया था तो कैसे नवाब आसिफुद्दौला ने इतनी आलीशान इमारतें बनवाईं. उस समय लोग अपना योगदान दे रहे थे.

नवाब आसिफुद्दौला को सुराग लगा कि काले पहाड़ पर अकूत खजाना है. यहां एक फनदार काला नाग पहरा देता है, उसी के नीचे खजाना होता था. जिसके बाद ऐतिहासिक इमारतें, रूमी गेट वगैरह बनवाया गया. काला पहाड़ में नए लखनऊ के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया. नवाब खाली हाथ आए थे, यह बात सबको पता है. उसके बावजूद इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें बनवा लेना किसी तिलिस्म से कम नहीं. बताया जाता है कि उनका खुद का अपना मकान भी इतना आलीशान नहीं था, जो शीश महल के पीछे हुसैनाबाद में मौजूद है. यह सब काले पहाड़ की देन थी जो लखनऊ में इतनी शानदार इमारतें तैयार हुईं.

करीब 225 साल पुरानी मस्जिद
काला पहाड़ के इमाम मोहम्मद इमरान बताते हैं कि यह काफी पुरानी जगह है. यह नवाबों के समय के पहले की है. पहले हिजरी चलती थी, इस मस्जिद का निर्माण 1217 हिजरी में करवाया गया था. वर्तमान समय में 1442 हिजरी चल रही है. यह करीब 225 साल पुरानी मस्जिद है. पहले यहां पर कोई आबादी नहीं थी. इस समय तो यहां बस्तियां बस गई हैं. यह शेखपुर हबीबपुर के नाम से दर्ज है. यहां पर अब कुछ लोग हैं, जो इसकी देखभाल कर रहे हैं. पहले हमारे बुजुर्ग यहां की देखभाल किया करते थे. इसका इतिहास काफी पुराना है.

लोग जमीन में रखकर जलाते थे लाशें
पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के विधायक सुरेश श्रीवास्तव बताते हैं कि जब मैं 1996 में पहली बार विधायक बना तुम मुझसे लोग मिलने के लिए आए और कहा कि काला पहाड़ श्मशान घाट यहां पर है. जिसमें गरीब लोग जिनके यहां किसी की मृत्यु हो जाती थी तो लोग गुलाले व भैंसा कुंड नहीं पहुंच पाते थे. वह लोग इसी जगह पर क्रिया कर्म करते थे. मैंने जाकर के वहां देखा कि लोग जमीन में लाशे रखकर के जलाते थे और अस्थियां पास में मौजूद झील में फेंक दिया करते थे. यहां पर किसी तरीके की कोई व्यवस्था नहीं थी.

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