लखनऊ : कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फंगस का भी देश में प्रकोप बढ़ गया है. यूपी सरकार ने भी अब म्युकरमायकोसिस यानि ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया है. ऐसे में कोरोना मरीजों के साथ-साथ कमजोर इम्यूनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) वाले हर एक को सजग रहना होगा. ब्लैक फंगस आपके घर के आसपास ही है. लिहाजा, जरा भी लापरवाही जानलेवा हो सकती है. ऐसे में ब्लैक फंगस से किन्हें ज्यादा खतरा है, बीमारी को कैसे पहचानें, यह कब और कैसे जनलेवा हो जाता है और इसका क्या इलाज है, इस पर विस्तृत जानकारी लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. दीपक सिंह ने दी है.
लकड़ी-नमी वाली जगह पर फंगस
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक ब्लैक फंगस को म्युकर मायकोसिस कहते हैं. यह म्युकर मायसिटीस ग्रुप का फंगस है. फंगस नमी वाले स्थान, फफूंद वाली जगह, लकड़ी पर, गमले में, लोहे पर लगी जंग में, गोबर में और जमीन की सतह पर पाया जाता है. यानि कि यह वातावरण में मौजूद है. ऐसे में घर या आस-पास भी ब्लैक फंगस का खतरा हो सकता है.
हर किसी की नाक में पहुंचता है फंगस
डॉक्टर दीपक सिंह के मुताबिक ब्लैक फंगस वातावरण में है. ऐसे में हर किसी की नाक तक पहुंचता है. मगर मजबूत इम्यूनिटी वाले व्यक्तियों में अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ पाता है, जबकि कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों के शरीर में घातक बन जाता है.
इन लोगों को है ज्यादा खतरा
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक कैंसर के रोगी, डायबिटीज के रोगी, हाइपोथायराइड के मरीज, ट्रांसप्लांट के मरीज, वायरल इंफेक्शन के मरीज, बैक्टीरियल इंफेक्शन के मरीज, एचआईवी, टीबी, कोविड इंफेक्शन के मरीज, पोस्ट कोविड मरीज, कीमोथेरेपी, स्टेरॉयड थेरेपी, इम्युनोसप्रेशन थेरेपी के मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा रहता है.
शुरुआत में गौर कर फंगस को दें मात
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक फंगस पहले नाक में जाता है. ऐसे में नाक बंद होने लगती है. उसमें भारीपन, नाक का डिस्चार्ज होना, हल्का दर्द होना या फिर लालिमा, दाना होने जैसे लक्षण महससू होने पर तुरंत सतर्क हो जाएं. डॉक्टर को दिखाकर फंगस को शुरुआती दौर में ही मात दे सकते हैं. इसे नजरअंदाज करने पर फंगस पैरानेजल साइनसेस (पीएनएस) में इकट्ठा होकर बॉल बनाता है. इसके बाद आंख में पहुंच बनाता है. धीरे-धीरे त्वचा को भी काली कर देता है. ऐसी स्थिति में सर्जरी कर आंख को निकालना तक पड़ जाता है. वहीं काली त्वचा होने पर भी ऑपरेशन किया जाता है.
जब दांत-जबड़ों में हो दर्द तो हो जाएं सतर्क
चूंकि ब्लैक फंगस नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है. इस वजह से व्यक्ति के दांतों या जबड़े में दर्द महसूस हो सकता है. चेहरे पर सूजन आ सकती है. ब्लैक फंगस के कारण हड्डियों में रक्त का संचार बंद हो जाता है, जिससे उसमें गलन शुरू हो जाती है. इलाज में देरी होने पर व्यक्ति का दांत या जबड़ा भी निकालना पड़ सकता है.
कब बन जाता है फंगस घातक
जब फंगस तोड़ देता है बोन : डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक आंख में फंगस पहुंचने पर भी नजरअंदाज करने से यह दिमाग और आंख के बीच की हड्डी को तोड़ देता है. इस हड्डी को आर्बिट रूट कहते हैं. इसी को तोड़कर फंगस ब्रेन में पहुंच जाता है. ब्रेन में मौजूद सीएसएफ फ्ल्यूड में इन्फेक्शन कर देता है. ऐसे में मरीज फंगल इंसेफ्लाइटिस की चपेट में आ जाता है. ऐसी स्थिति में पहुंचने पर 70 से 80 फीसदी मरीज की जान चली जाती है.
जब फंगस खून में बना लेता है पहुंच
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक संक्रमण जब तक नाक में रहता है, तब तक इलाज संभव है. ब्लैक फंगस मस्तिष्क तक नहीं पहुंचना चाहिए. ये जब मस्तिष्क में पहुंच जाता है तब कैवेरनेस साइनस थ्रॉम्बोसिस करता है. इसमें दिमाग की जो नसें खून वापस लेकर हृदय तक आती हैं वो चोक हो जाती हैं. खून का थक्का बनने के कारण मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है जो मौत का बड़ा कारण है. वहीं खून में फंगस होने पर सेप्टीसीमिया का भी खतरा बढ़ जाता है. इसमें भी 70 से 80 फीसदी डेथ रेट है.
कौन से जांच हैं अहम
डॉक्टर दीपक सिंह के मुताबिक व्यक्ति को लक्षण का अहसास होने पर तत्काल अस्पताल पहुंचना चाहिए. डॉक्टर से संपर्क कर उसे सीटी पीएनएस कराना चाहिए. साथ ही नेजल इंडोस्कोपी कराकर बीमारी को पहचाना जा सकता है. वहीं बीमारी बढ़ने पर डॉक्टर दिक्कतों के आधार पर अन्य जांच कराएंगे.
चार दिन लक्षण पर ध्यान, 30 दिन तक मॉनिटरिंग अहम
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक ब्लैक फंगस की चपेट में आने पर शुरुआती लक्षण नाक बंद होना, बहना या कालापन और आंखों में लालिमा हो सकती है. चार दिन बाद संक्रमण का स्तर गंभीर होने पर बलगम में कालापान, खून की उल्टी, बेहोशी इत्यादि की समस्या शुरू हो सकती है. ऐसे में कोरोना के जो मरीज स्वस्थ होकर घर पर आराम कर रहे हैं वो अपने स्वास्थ्य की निगरानी करें. यही नहीं, कोरोना संक्रमण के बाद व्यक्ति के लिए पहले 30 दिन बहुत अहम होते हैं. संक्रमण काल के 30 दिन पूरे होने पर व्यक्ति को डॉक्टरी सलाह के आधार पर रूटीन इंडोस्कोपी और एमआरआई जांच करानी चाहिए. मधुमेह से ग्रसित या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों के लिए ये जांच अनिवार्य कराएं, क्योंकि ऐसे ही लोगों में ब्लैक फंगस होने का खतरा ज्यादा है.
ऑपरेशन की नौबत आने पर कई गुना बढ़ जाता है इलाज का खर्च
डॉ. दीपक सिंह के मुताबिक फंगस की चपेट में आने वाले गंभीर मरीजों को एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन लगाया जाता है. एक इंजेक्शन की कीमत करीब छह से आठ
हजार रुपये है. 28 दिन या इससे भी ज्यादा समय तक इंजेक्शन लगता है. वहीं दो से तीन माह एक टैबलेट भी चलती है. इस दौरान यदि ब्लैक फंगस के मरीज को ऑपरेशन की नौबत पड़ जाए तो खर्च कई गुना बढ़ सकता है. ऐसे में सावधानी सबसे बेहतर उपचार है. शरीर में किसी बदलाव को नजरअंदाज न करें.
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