लखनऊ: कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस (Black Fungus) काफी घातक साबित हो रहा है. यह ब्रेन पर अटैक कर जहां जान ले रहा है तो वहीं ये बीमारी शरीर के कई अंगों को भी खराब कर रही है. यही नहीं ब्लैग फंगस अब तो मरीजों के दांतों को भी नहीं बख्श रहा है. मसूड़ों में पहुंचकर उनमें सड़न फैला रहा है. डॉक्टरों को इंफेक्शन के फैलाव को रोकने के लिये रोगियों में दांत उखाड़कर जबड़े तक साफ-सफाई करनी पड़ रही है.
केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक संस्थान में ब्लैक फंगस (Black Fungus) का अलग वार्ड है. यहां बुधवार शाम तक 250 मरीज भर्ती किए गए. इसमें 150 मरीजों की हालत गंभीर हो गई. ऐसे में डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर मरीजों की जिंदगी बचाई. इसमें चार मरीजों के ईएनटी डॉक्टरों ने साइनस संबधी प्रोसीजर किए. इसके अलावा 30 ऑपरेशन आंख संबंधी किए गए. डॉक्टरों ने मरीजों के आई केयर ट्रीटमेंट में आंखों के पीछे से इंजेक्शन की डोज दी. वहीं दंत संकाय की मैक्सिलो फेशियल सर्जरी की टीम ने जबड़ा संबंधी ऑपरेशन किए. इसमें 10 मरीजों के फंगस की चपटे में आए दांतों को भी निकाला गया.
कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले रहें सतर्क
कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फंगस का भी देश में प्रकोप बढ़ गया है. ऐसे में कोरोना मरीजों के साथ-साथ कमजोर इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) वाले हर एक को सजग रहना होगा. कारण, यह फंगस आपके घर के आसपास ही है. लिहाजा, जरा भी लापरवाही जानलेवा हो सकती है.
लकड़ी व नमी वाली जगह पर फंगस
ब्लैक फंगस को म्युकर मायकोसिस कहते हैं. यह म्युकर मायसिटीस ग्रुप का फंगस है. फंगस नमी वाले स्थान, फफूंद वाली जगह, लकड़ी पर, गमले में, लोहे पर लगी जंग में, गोबर में व जमीन की सतह पर पाया जाता है. यानी कि यह वातावरण में मौजूद है. ऐसे में घर या आसपास भी ब्लैक फंगस का खतरा हो सकता है.
हर किसी के नाक में पहुंचता है फंगस
ब्लैक फंगस वातावरण में है. ऐसे में हर किसी की नाक तक पहुंचता है. मगर मजबूत इम्युनिटी वाले व्यक्तियों में अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ पाता है, जबकि कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों के शरीर में घातक बन जाता है.
इन्हें फंगस से खतरा ज्यादा
कैंसर के रोगी, डायबिटीज के रोगी, हाइपोथायराइड के मरीज, ट्रांसप्लांट के मरीज, वायरल इंफेक्शन के मरीज, बैक्टीरियल इंफेक्शन के मरीज, एचआईवी, टीबी, कोविड इंफेक्शन के मरीज, पोस्ट कोविड मरीज, कीमोथेरेपी, स्टेरॉयड थेरेपी, इम्युनोसप्रेशन थेरेपी के मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा रहता है.
देर करने पर नाक में जमावड़ा कर लेता है फंगस
फंगस पहले नाक में जाता है. ऐसे में नाक बंद होने लगती है. उसमें भारीपन, नाक का डिस्चार्ज होना, हल्का दर्द होना या फिर लालिमा, दाना होने जैसे लक्षण महससू होने पर तुरंत सतर्क हो जाएं. डॉक्टर को दिखाकर फंगस को शुरुआती दौर में ही मात दे सकते हैं. इसे नजरंदाज करने पर फंगस पैरानेजल साइनसेस (पीएनएस) में इकट्ठा होकर बॉल बनाता है. इसके बाद आंख में पहुंच बनाता है. धीरे-धीरे त्वचा को भी काली कर देता है. ऐसी स्थिति में सर्जरी कर आंख को निकालना तक पड़ जाता है. वहीं काली त्वचा होने पर भी ऑपरेशन किया जाता है.
ब्रेन में पहुंचते ही बन जाता जनलेवा
आंख में फंगस पहुंचने पर भी नजर अंदाज करने से यह दिमाग और आंख के बीच की हड्डी को तोड़ देता है. इस हड्डी को आर्बिट रूट कहते हैं. इसी को तोड़कर फंगस ब्रेन में पहुंच जाता है. ब्रेन में मौजूद सीएसएफ फ्ल्यूड में इन्फेक्शन कर देता है. ऐसे में मरीज फंगल इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ जाता है. ऐसे स्थिति में पहुंचने पर 70 से 80 फीसदी मरीज की जान चली जाती है.