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अब चाय-नाश्ते पर होगी बात, दलितों को पढ़ाएंगे राष्ट्रवाद का पाठ! - भाजपा कार्यकर्ता

सूबे की सत्ता में वापसी के लिए जरूरी है कि भाजपा किसी भी तरीके से दलितों को अपने पाले में करे. इसके लिए पार्टी ने अब योजनाबद्ध तरीके से दलितों के घर चाय-नाश्ते का प्लान (Tea and breakfast plan in the house of Dalits) बनाया है. साथ ही स्थानीय नेताओं और अन्य पदाधिकारियों के अलावा कार्यकर्ताओं को भी अब इस काम में लगा दिया गया है. यानी चाय-नाश्ते पर अब पार्टी के नेता दलितों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाएंगे.

दलितों को पढ़ाएंगे राष्ट्रवाद की पाठ!
दलितों को पढ़ाएंगे राष्ट्रवाद की पाठ!

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Published : Nov 20, 2021, 9:31 AM IST

Updated : Nov 20, 2021, 10:06 AM IST

हैदराबाद: यूपी में भाजपा पूरी तरह से चुनावी मूड (Election mood)में है. प्रचार और जनसंपर्क को नित्य नए कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. यहां तक कि भिन्न-भिन्न जाति समुदाय के लोगों से संपर्क के लिए पृथक सम्मेलन कराए जा रहे हैं. जिनमें पार्टी से उनकी उम्मीदों पर विस्तार से चर्चाएं हो रही हैं. इसी कड़ी में अब सूबे के भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह (Swatantra Dev Singh)ने जिलेवार स्थानीय पार्टी नेतृत्व व कार्यकर्ता से दलितों के घर जाकर चाय-नाश्ता करने और उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर वोट करने के लिए राजी करने की बात कही है. इतना ही नहीं आगे उन्होंने कार्यकर्ताओं से दलितों के साथ मेल-जोल बढ़ाने और उनके साथ चाय पर चर्चा और खाना खाने तक की बात कही है.

दरअसल, राजधानी लखनऊ में पार्टी के जिला स्तरीय नेताओं व अन्य पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि 2022 के चुनाव (UP Assembly Election 2022) में भगवान राम के लिए भाजपा की सरकार बनानी है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा करना है. इसके लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं से कड़ी मेहनत करने को कहा है, ताकि पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सके.

प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह

हालांकि, स्वतंत्र देव के इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा सूबे में जाति और धर्म के नाम पर चुनाव लड़ेगी. खैर, सूबे की सियासत में जातियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से पिछड़े वर्ग की सियासत को नई राह मिली है. साथ ही समाजवादी पार्टी का जन्म भी मंडल आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद ही हुआ है.

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ऐसे में अगर सूबे में भाजपा की सियासी डगर को देखे तो पाएंगे कि पहले भी धर्म के नाम पर पार्टी चुनाव लड़ने के साथ ही सरकारें भी बनाई है. वहीं, मंडल कमीशन के लागू होने के बाद हुए 1991 के चुनाव में भाजपा ने 221 सीटें जीती थीं. यह चुनाव मंडल के बदले भाजपा की कमंडल की राजनीति शुरू करने के बाद हुआ था.

दलितों को पढ़ाएंगे राष्ट्रवाद का पाठ!

लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि 2017 से पहले तक के विधानसभा चुनान में भाजपा कभी 200 सीटें नहीं जीत सकी थी. लेकिन 2017 के मोदी लहर में पार्टी को खुद के दम पर 312 सीटें मिली थीं. लेकिन मौजूदा परिस्थिति में क्या पार्टी 2017 के ऐतिहासिक प्रदर्शन और सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को फिर से 2022 में दोहरा सकेगी.

इसके अलावा पिछले बार टिकट बंटवारे में दलित समुदाय के गैर जाटव और पिछड़ों में गैर यादवों को टिकट देने पर पार्टी का विशेष ध्यान रखा था. ऐसे में एक बार फिर से पार्टी अपने पुराने फॉर्मूले को नए अंदाज में पेश कर अपने पाले में समीकरण बनाने में जुटी है.

दलितों को पढ़ाएंगे राष्ट्रवाद का पाठ!

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Last Updated : Nov 20, 2021, 10:06 AM IST

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