हैदराबाद:अबकी भाजपा को उत्तर प्रदेश में किसी भी कीमत पर जीत चाहिए. यही कारण है कि पार्टी किसी भी आंतरिक व बाहरी चुनौतियों से निपटने को तैयार है. पार्टी सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान अगर कोई नेता टिकट न मिलने की सूरत में बगावत करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे अविलंब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा. इस दौरान पार्टी उस नेता के कद और पद तक का खयाल नहीं करेगी.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने बताया कि यह चुनाव काफी अहम है. ऐसे में हर सीट पर पार्टी बहुत सोच समझकर प्रत्याशी के नाम पर मुहर लगाएगी. इसके लिए जिलेवार एक टीम पहले से ही काम भी कर रही है. इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि पार्टी के इतर अगर कोई अन्य व्यक्ति भी जिसकी क्षेत्र में साख और जनप्रियता है तो पार्टी उससे भी संपर्क कर उसे मैदान में उतार सकती है. यानी हर सीट पर जिताऊ प्रत्याशी को ही अहमियत दी जाएगी. हालांकि, प्रत्याशी चयन के लिए कोई निर्धारित पैरामीटर नहीं है. लेकिन इतना तो स्पष्ट हो गया है कि पिछले चुनाव में हारे प्रत्याशियों को अबकी टिकट नहीं मिलने वाला है.
आगामी विधानसभा चुनाव से पहले बनते बिगड़ते सियासी समीकरणों के अध्ययन व अवलोकन में लगी विशेषज्ञों की टीम की मानें तो पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन और लखीमपुर हिंसा का असर अबकी देखने को मिल सकता है. ऐसे में सत्तारूढ़ भाजपा ने उन विधानसभा क्षेत्रों पर अधिक फोकस किया है, जहां पार्टी को पिछले चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा था. दरअसल, अबकी इन सीटों पर जीत की संभावना इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यहां विकास कार्यों की रफ्तार काफी स्लो रही है.
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ऐसे में ऐन चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हारे क्षेत्रों में जारी शिलान्यास के कार्यक्रम पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. वहीं, 78 सीटों पर पार्टी हारे प्रत्याशियों को दोबारा मैदान में नहीं उतारेगी. इनमें कई बड़े नाम भी शामिल हैं.
इधर, दोबारा सत्ता में आने के लिए भाजपा ने एक साथ कई रणनीतियों पर काम करना शुरू किया है. वहीं, अबकी पार्टी का पूरा ध्यान उन विधानसभा सीटों पर है, जिन सीटों पर पिछले चुनाव में उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा था. खैर, भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर पिछले विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बीच उसे 78 सीटों पर पराजय का मुंह देखना पड़ा था. सूत्रों की मानें तो अबकी कई बड़े नेताओं के भी टिकट कट सकते हैं.
हालांकि, मेरठ से लक्ष्मीकांत बाजपेई की टिकट को लेकर फिलहाल कुछ कह पाना थोड़ा मुश्किल है. क्योंकि हाल ही में पार्टी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए ज्वाइनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया है और इस टीम में सूबे के दोनों उप मुख्यमंत्रियों को बतौर सदस्य जोड़ा गया है. ऐसे में इस कमेटी और उनकी स्वयं की अहमियत को समझा जा सकता है. वहीं, 2017 के प्रचंड मोदी लहर में भी बाजपेई चुनाव हार गए थे.
बता दें कि लक्ष्मीकांत बाजपेई सूबे के पूर्व पार्टी अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इधर, भाजपा संगठन से जुड़े सूत्रों की मानें तो पार्टी करीब 150 लोगों के टिकट काटने या बदलने की तैयारी में है. इसके साथ ही यह भी तय है कि पार्टी 2017 के हारे प्रत्याशियों को इस बार टिकट नहीं देगी.