लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी (BJP) पसमांदा मुस्लिम (pasmada muslim) समाज से इस बार निकाय चुनाव (municipal elections 2022) में 300 नए नेताओं को चुनाव लड़ाएगी. पार्टी ने तय कर लिया है कि बड़े वोट बैंक पर कब्जा पाने के लिए इस समाज के बीच के नए नेताओं को खड़ा करना होगा. शायद यही वजह है कि मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पसमांदा समाज के उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी. इससे भाजपा को न केवल अधिक सीटें मिलने की आस है बल्कि इस समाज के बीच अपना वोट बढ़ने की भी उम्मीद है.
दरअसल भाजपा की नजर मुसलमानों की लगभग 90 फीसदी पसमांदा आबादी पर है. पसमांदा समाज में अंसारी, सैफी, सलमानी, धोबी, नाई, मंसूरी, बुनकर, धुनिया, रंगरेज, राइन, घोसी, कुरैशी, नाइक, अल्वी, कासगर, इदरीसी, फकीर, गुजर, लोहार आदि मुसलमान आते हैं. इन्हें एक तरह से पिछड़ा और गरीब तबका माना जाता है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार अपनी योजनाओं के माध्यम से इसी तबके को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है.
सात माह पहले प्रदेश में जब योगी सरकार का गठन हुआ था तब पार्टी ने परंपरा तोड़कर पसमांदा समाज के दानिश आजाद को मंत्री बनाया. आम तौर पर भाजपा में शिया समुदाय के नेताओं को मंत्रिपद आदि के लिए प्रमुखता दिए जाने की परंपरा रही है. दानिश आजाद को जब मंत्रीपद की शपथ दिलाई गई तब उस समय वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. बाद में पार्टी ने उन्हें विधान परिषद भेजा. कई लोगों को सरकार का यह फैसला चौकाने वाला लगा. हालांकि भाजपा कोई भी फैसला कभी यूं ही नहीं करती है. उसके पीछे सोची-समझी रणनीति होती है. हर विधानसभा क्षेत्र में दस हजार पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने का भाजपा का लक्ष्य बहुत मुश्किल नहीं है. इस समाज में पार्टी ने पहले से ही पैठ बना रखी है. उत्तर प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे में तीन चौथाई मुसलमान पसमांदा समाज से ही हैं.