लखनऊ : 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी बड़ी संख्या में पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने की योजना बना रही है. पार्टी ने हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम दस हजार पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने का लक्ष्य तय किया है. विगत विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट मिलने की बात कही गई थी. स्वाभाविक है कि ऐसी रिपोर्ट्स भाजपा का मनोबल बढ़ाती हैं. प्रदेश की कुल आबादी में चार करोड़ के करीब पसमांदा मुसलमान हैं. भाजपा की निगाह इसी वोट बैंक पर है.
हाल ही में हैदराबाद में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में पसमांदा मुसलमानों की चर्चा की थी. प्रधानमंत्री की यह चर्चा यूं ही नहीं थी. दरअसल भाजपा की नजर मुसलमानों की लगभग नब्बे फीसदी पसमांदा (एक तरह से पिछड़ा वर्ग) आबादी पर है. पसमांदा समाज में अंसारी, सैफी, सलमानी, धोबी, नाई, मंसूरी, बुनकर, धुनिया, रंगरेज, राइन, घोसी, कुरैशी, नाइक, अल्वी, कासगर, इदरीसी, फकीर, गुजर, लोहार आदि मुसलमान आते हैं. जिन्हें एक तरह से पिछड़ा और गरीब तबका माना जाता है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार अपनी योजनाओं के माध्यम से इसी तबके को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है.
तीन माह पहले प्रदेश में जब योगी सरकार का गठन हुआ, पार्टी ने तो परंपरा तोड़कर पसमांदा समाज के दानिश आजाद को मंत्री बनाया. आम तौर पर भाजपा शिया समुदाय के नेताओं को मंत्रिपद आदि के लिए प्रमुखता दिए जाने की परंपरा रही है. दानिश आजाद को जब मंत्रीपद की शपथ दिलाई गई, उस समय वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. बाद में पार्टी ने उन्हें विधान परिषद भेजा. कई लोगों को सरकार का यह फैसला चौकाने वाला लगा. हालांकि भाजपा कोई भी फैसला कभी यूं ही नहीं करती. उसके पीछे कोई उपयुक्त कारण जरूर होता है. हर विधानसभा क्षेत्र में दस हजार पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने का भाजपा का लक्ष्य बहुत मुश्किल नहीं है. इस समाज में पार्टी ने पहले से ही पैठ बना रखी है. उत्तर प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे में तीन चौथाई मुसलमान पसमांदा समाज से ही है.