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कई सीटों पर भाजपा ने चर्चा से बाहर रहे चेहरों को उतारकर सबको चौंकाया - नगर निकाय चुनाव 2023

नगर निकाय चुनाव 2023 को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने मेयर के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. पार्टी ने लखनऊ में सुषमा खरकवाल को प्रत्याशी घोषित किया है. उम्मीदवारों के नाम की घोषणा होने के बाद भाजपा ने चर्चा से बाहर रहे चेहरों को उतारकर सबको चौंकाया. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Apr 18, 2023, 9:25 AM IST

लखनऊ : निकाय चुनाव में मेयर पद के लिए भारतीय जनता पार्टी ने चर्चा से बाहर रहे कई प्रत्याशी घोषित कर सबको चौंका दिया. एक ओर बड़े-बड़े नामों की चर्चा होती रही, तो दूसरी ओर ऐसे नामों की घोषणा हुई, जिनकी लोगों को उम्मीद नहीं थी. यदि राजधानी लखनऊ की ही बात करें, तो भारतीय जनता पार्टी में यहां टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त थी. हालांकि जब टिकटों की घोषणा हुई तो एक ऐसा नाम सामने आया, जिसे कुछ पार्टी कार्यकर्ता भी नहीं जानते थे आम लोगों की बात ही क्या! भाजपा ने लखनऊ में सुषमा खरकवाल को मेयर पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया है. अकेले लखनऊ की ही बात नहीं है, प्रदेश के कई अन्य बड़े शहरों में भी कई चौंकाने वाले नाम सामने आए हैं. हो सकता है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो अथवा लंबे समय तक पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं को भी अवसर देने की बात, जो भी हो भाजपा की इस रणनीति ने सबको चौंकाया जरूर है.



प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निवर्तमान मेयर रहीं संयुक्ता भाटिया अपनी बहू के लिए भाजपा से टिकट चाहती थीं, वहीं लखनऊ के दो बार मेयर रहे और पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा भी अपनी पत्नी के लिए मेयर पद का टिकट चाहते थे. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुईं सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को भी इस पद का दावेदार माना जा रहा था. अपर्णा यादव कोविड संकट के दौरान भी सामाजिक कार्यों में काफी सक्रिय थीं. सामाजिक कार्यों के साथ ही पर्वतीय समाज से होने के कारण उनको मजबूत दावेदार माना जा रहा था, क्योंकि लखनऊ में उत्तराखंड के मूल निवासी बड़ी संख्या में रहते हैं. डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी अपनी पत्नी नम्रता पाठक के लिए मेयर पद का टिकट चाहते थे, वहीं लखनऊ उत्तरी विधानसभा सीट से विधायक डॉ. नीरज बोरा की पत्नी बिंदु बोरा और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अखिलेश दास की पत्नी अलका दास का नाम भी प्रमुखता से चल रहा था. इन सभी नामों को पीछे छोड़ते हुए सुषमा खरकवाल ने बाजी मार ली. सुषमा को रक्षा मंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह की पसंद माना जा रहा है. वह मूल रूप से उत्तराखंडी ब्राह्मण परिवार से आती हैं. भाजपा लखनऊ से किसी ब्राह्मण चेहरे को ही इस बार मैदान में उतारना चाहती थी.‌ मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने वरिष्ठ पत्रकार वंदना मिश्रा को मैदान में उतारा है.



यदि वाराणसी की बात करें तो यहां भाजपा ने अशोक तिवारी को अपना उम्मीदवार बनाया है, हालांकि नाम घोषित किए जाने से पहले अशोक तिवारी के नाम पर कोई चर्चा नहीं थी. वाराणसी से भाजपा के महानगर अध्यक्ष विद्यासागर राय को प्रमुख दावेदार माना जा रहा था. इस सीट के लिए चार दर्जन से ज्यादा नाम दावेदारों में शामिल थे. यही कारण है कि पार्टी के लिए निर्णय लेना कठिन हो रहा था. काशी में दक्षिण भारतीयों की अच्छी खासी तादाद है, इसलिए सुब्रमण्यम भारती को भी इस पद के लिए दावेदार माना जा रहा था. इसके अलावा शशांक अग्रवाल, मीना चौबे, महेश चंद्र श्रीवास्तव, अशोक पांडेय और धर्मेंद्र सिंह आदि नामों पर चर्चा हो रही थी, लेकिन भाजपा ने अशोक तिवारी का नाम घोषित कर सभी को हैरत में डाल दिया. अशोक तिवारी भाजपा के काशी क्षेत्र के क्षेत्रीय मंत्री हैं. इसी तरह प्रयागराज से निवर्तमान मेयर और कैबिनेट मंत्री नंदगोपाल नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता को प्रबल दावेदार माना जा रहा था. कहा जा रहा है कि मंत्री नंद गोपाल नंदी ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए खूब पैरवी की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. प्रयागराज में भारतीय जनता पार्टी ने उमेश चंद्र गणेश केसरवानी को अपना प्रत्याशी बनाया है. इस दौड़ में करीब एक दर्जन नाम शामिल थे, जिन्हें पछाड़कर केसरवानी ने सफलता हासिल की.




राजनीतिक विश्लेषण डॉ प्रदीप यादव कहते हैं 'यह पहला मौका नहीं है जब भारतीय जनता पार्टी ने चर्चा में रहे नामों से इतर प्रत्याशी मैदान में उतारे हों. कुछ दिन पहले ही विधान परिषद के लिए जब नामों की घोषणा हुई तब भी सभी लोग हैरान रह गए थे. उस वक्त छह सीटों के लिए लगभग 50 नाम चर्चा में थे, लेकिन जो नाम सामने आए उनमें से ज्यादातर चर्चा से बाहर वाले नाम थे. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली अन्य दलों से अलग है. एक तो भाजपा में गोपनीयता कभी बंद नहीं होती और निर्णय एक व्यक्ति का न होकर सामूहिक होता है. जब किसी पद के लिए कई प्रमुख दावेदार होते हैं, तब पार्टी भितरघात रोकने के लिए नए चेहरों को अवसर दे देती है. यह ठीक भी है. पार्टी के लिए निष्ठा और ईमानदारी से अपना जीवन खपाने वाले लोगों को भी अवसर तो मिलना ही चाहिए. याद करिए जब केंद्र ने राज्यपालों के नामों की घोषणा की थी अथवा राष्ट्रपति पद के लिए द्रोपदी मुर्मू के नाम की घोषणा हुई थी, इससे पहले शायद ही किसी ने इन नामों की चर्चा सुनी हो. शायद पार्टी का कार्यकर्ताओं और नेताओं को यही संदेश है कि चर्चा से दूर रहें और पार्टी के लिए मेहनत और लगन से काम करें, तो पारितोषिक (पुरस्कार) मिल ही जाएगा.'

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