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पश्चिम यूपी की हारी सीटों पर जीत के लिए भाजपा ने अपनाई ये रणनीति

यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तैयारियों में जुटी सत्तारूढ़ भाजपा ने इलाके व क्षेत्रवार नीतियां बनानी शुरू कर दी है. साथ ही अबकी पार्टी पश्चिम उत्तर प्रदेश की उन सीटों पर विशेष ध्यान दे रही है, जहां उसे पिछले विधानसभा चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा था. यही कारण है कि पार्टी के रणनीतिकारों ने पश्चिम यूपी की 28 सीटों पर पूरी तरह से फोकस कर रखा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

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Published : Jan 4, 2022, 7:42 AM IST

हैदराबाद:आगामी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में भाजपा एक बार फिर विकास के साथ ही धुव्रीकरण की सियासत करने को चुनावी मैदान में कूद पड़ी है. इतना ही नहीं पार्टी ने अपने पूर्व निधारित एजेंडे के तहत सांप्रदायिकता की आग में सालों झुलसे पश्चिमी यूपी में मोदी-योगी की जोड़ी ने अपनी मुहर लगाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी इसी लाइन पर अपना चुनाव प्रचार करते हुए पश्चिम की हवा को पूर्वांचल तक ले जाएगी.

वहीं, यहां भाजपा क्षेत्र के लोगों को अतीत की याद दिलाते हुए उनके मर्म को छूने का काम कर रही है. साथ ही यहां के नाराज किसानों को पार्टी से फिर से जोड़ने की नीति के तहत की उन्हें दंगों की याद दिलाई जा रही है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022)के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कमजोर सीटों पर नजर गड़ा दी है. पश्चिमी यूपी में 16 जिलों की 28 विधानसभा की हारी सीटों पर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फोकस है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

इसलिए पिछले विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा को हार मिली थी उन सीटों पर भाजपा ने दम लगाना शुरू कर दिया है. ऐसी सीटों पर भाजपा को लाभ देने के लिए पहले ही सरकारी योजनाओं में शामिल किया जा चुका है. इतना ही नहीं पश्चिमी यूपी के साथ ही रूहेलखंड की सीटों पर भी पार्टी की नजर है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शाहजहांपुर, बदायूं, पीलीभीत, बरेली आदि में कई योजनाओं की सौगात पहले ही दे दिए हैं.

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अगर बात पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो पश्चिमी यूपी के गढ़ मेरठ में भाजपा को मुंह की खानी पडी थी, जहां तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी समेत भाजपा के सात में से छह नेता चुनाव हार गए थे. जबकि सहारनपुर में सात में से तीन, मुरादाबाद में छह में से चार सीटों पर भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ रहा था. ठीक इसी प्रकार अमरोहा और फिरोजाबाद में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी थी.

इधर, बदायूं के 6 में से 5 सीटों पर पिछली बार भाजपा को कामयाबी मिली थी. वहीं, संभल में चार में से दो सीटें भाजपा हारी थी और इन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी को सफलता मिली थी. बिजनौर में आठ में से दो सीटों पर भाजपा हारी थी और इन दोनों ही सीटों पर सपा जीती थी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

बात अगर रामपुर की करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की 5 में से 3 सीटों पर भाजपा हारी थी, जहां सपा को जीत मिली थी. शामली में तीन में से एक सीट पर भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा था. इसके अलावा हापुड़ में 3 में से एक सीट पर भाजपा को विफलता हाथ लगी थी और इस सीट को निकलने में बसपा सफल हुई थी.

शाहजहांपुर में 6 में से एक सीट पर भाजपा हारी थी, जहां सपा को जीत मिली थी. वहीं, मथुरा में 5 में से एक पर भाजपा हारी थी. हाथरस में भाजपा को तीन में से एक सीट पर विफलता मिली थी. जहां तक पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की बात है तो 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा को ध्रुवीकरण का बड़ा फायदा मिला था. इस बार किसान अंदोलन के चलते कुछ सीटों के नुकसान उठाने के भय से भाजपा ने हिन्दुत्व की धार तेज करने की कवायद अभी से ही तेज कर दी है.

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