लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी 2021 में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) की तैयारियों में जुटी रही है. बूथ विजय अभियान, संपर्क अभियान, पन्ना प्रमुख बनाना जैसे अनेक कार्यक्रम चलाए. इसके अलावा पंचायत चुनाव की चुनौती सामने रही. कुलदीप सेंगर और अजय मिश्र टेनी जैसे नेताओं की करतूतों से भी भाजपा इस साल जूझती रही. कोरोना काल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद मैदान में उतारकर स्पष्ट संदेश दिया कि मेहनत और फील्ड में उतर कर ही कामयाबी हासिल हो सकती है. इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता मैदान में उतरे. कोरोना काल में पार्टी द्वारा किए गए कामों का श्रेय 2022 के विधानसभा चुनाव में लेने की तैयारी भाजपा कर रही है.
2021 आते ही चुनावी तैयारी में जुटी भाजपा
भाजपा ने 2021 की शुरू होते ही यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों में जुट गई. भाजपा ने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए लोगों को जोड़ने का अभियान शुरू किया. नव वर्ष पर हुए कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी ने बूथों पर कमेटियों को सक्रिय किया. 21 कार्यकर्ताओं की बूथ कमेटियां पूरे उत्तर प्रदेश में बनाई गईं. 1,65,000 बूथों में से अधिकांश पर पार्टी ने अपनी बूथ कमेटियों का गठन कर दिया.
करीब 10 लाख पन्ना प्रमुख भी बनाए गए. वोटर लिस्ट के प्रत्येक पृष्ठ पर एक कार्यकर्ता को पन्ना प्रमुख कहते हैं. इस पन्ना प्रमुख अभियान में सामान्य कार्यकर्ता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सभी मंत्री और सांसद भी शामिल किए गए.
इस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने संगठन के स्तर पर ग्रास रूट स्तर पर काम किया है. पार्टी ने अपनी सभी 403 विधानसभा सीटों के लिए विधानसभा प्रभारियों की नियुक्ति भी की है, जो एक-दूसरे जिले से आते हैं और उनका काम विधानसभा क्षेत्र में पार्टी या उसके मजबूत प्रत्याशियों का कामकाज देखना होता है. इसकी रिपोर्ट विधानसभा प्रभारी संगठन को उपलब्ध कराते हैं. विधानसभा चुनाव में जब टिकट चयन होगा तब इन विधानसभा प्रभारियों की रिपोर्ट अहम होगी.
पंचायत चुनाव में पार्टी पर लगा सत्ता के दुरुपयोग का आरोप
कोरोना जब चरम पर था तब सरकार ने पंचायत चुनाव कराए. सीधे जनता से चुने जाने वाले पदों पर भाजपा का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा, जितनी पार्टी को उम्मीद थी. जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में भाजपा-सपा और बसपा की संख्या लगभग बराबर थी. 800 से अधिक सीटों पर चुनाव हुए थे. इसके बाद जिला पंचायत चेयरमैन के चुनाव में कुल 75 सीटों में से 90 फीसद से अधिक भाजपा के कब्जे में गई थीं. भाजपा पर आरोप लगे थे कि उसने सत्ता का दुरुपयोग किया है. इसी तरह से ब्लॉक प्रमुखों के पदों पर भी सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगे. पार्टी ने इस चुनाव में मिली सफलता को अपने खाते में ही जोड़ा.
विवादित फैसलों को पलटने में पार्टी को मिली बदनामी
भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में बलात्कार के दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की पत्नी को टिकट दिया था. रेप पीड़िता ने तत्काल इस मामले में बयान जारी कर टिकट वापसी की मांग की थी. मीडिया और सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया होने के बाद पार्टी ने अपना फैसला बदला और टिकट माफिया रहे दिवंगत अजीत सिंह की पत्नी को दे दिया था. इसी तरह से पार्टी ने जुलाई में बसपा में रहे जितेंद्र सिंह बबलू को पार्टी में शामिल किया. बबलू पर आरोप हैं कि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में प्रयागराज से भाजपा सांसद रीता जोशी बहुगुणा के लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित आवास में आग लगाई थी. रीता जोशी ने जितेंद्र सिंह बबलू के भाजपा में आते ही तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उनको पार्टी से हटाने की मांग की. कुछ दिनों बाद पार्टी ने अपना यह फैसला भी बदला और बबलू को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
कई नेताओं की करतूतों का नहीं रहा जवाब
कई नेताओं की करतूतों ने भारतीय जनता पार्टी को असमंजस की स्थिति में भी डाला. जिसमें सबसे बड़ा नाम केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का है. टेनी के पुत्र पर आरोप है कि लखीमपुर खीरी में 4 किसानों को जीप से कुचलकर चार मौत के घाट उतार दिया. इस घटना के बाद लगातार अजय मिश्र किसान आंदोलन के नेताओं और विपक्ष के नेताओं के निशाने पर रहे. इसके बाद टेनी की मीडिया के साथ हुई नोकझोंक से पार्टी को और भी खराब स्थिति का सामना करना पड़ा. इसी वर्ष उन्नाव के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को भी अदालत से सजा मिलने का एलान हुआ. विपक्ष ने इस मुद्दे पर भी पार्टी को खूब घेरा.