लखनऊ:यूपी विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने में महज कुछ ही दिन शेष हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दल जहां जातीय आधार पर अपने सियासी अखाड़े सजा रहे हैं. वहीं, सियासत के पहलवानों ने भी स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे पर अपने-अपने दांव पेंच और राजनीतिक गुणा भाग लगाने शुरू कर दिए हैं. लेकिन सारी कवायदों के बावजूद आज तक भाजपा के सारी गणित प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मोहनलालगंज सीट पर फेल ही रही है. भाजपा और जनसंघ मिलकर भी 70 सालों से इस सीट पर कभी कमल का फूल नहीं खिला सके हैं. जबकि भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़े-बड़े राजनीतिक धुरंधरों को धूल चटा दी थी. लखनऊ की 176 मोहनलालगंज एक मात्र ऐसी सीट है, जहां पर अभी तक कमल नहीं खिला है. हालांकि इस सीट पर सपा, बसपा, कांग्रेस, जनता पार्टी और आरएसबीपी के उम्मीदवार जीते हैं.
यूपी में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें 176 नंबर की सीट को मोहनलालगंज विधानसभा सीट के नाम से जाना जाता है. यह सीट काफी लंबे समय से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहती चली आ रही है. राजधानी लखनऊ की इस सीट पर भाजपा हमेशा से अपने दांव लगाते रही है, बावजूद इसके 70 सालों से अब तक यहां उसे उसे सफलता नहीं मिली है. हालांकि 1952 में विधानसभा क्षेत्र के बनने के काफी बाद 1980 में भाजपा का गठन हुआ था, लेकिन उसके बाद राम लहर व मोदी लहर की सुनामी में भी यहां लाख कोशिशों के बावजूद भाजपा का कमल नहीं खिल सका था. वहीं, इस बार भी भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. तमाम दावों के बीच किसी मजबूत प्रत्याशी के चयन में जुटी है, जो सपा के गढ़ में साइकिल पंचर कर कमल खिला सके.
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स्थानीय बनाम बाहरी भी है मुख्य मुद्दा
मोहनलालगंज सुरक्षित सीट पर पिछले एक दशक से स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा भी हावी रहा है. इसी के चलते 2012 के चुनाव में सपा की प्रत्याशी चंदा रावत ने स्थानीय होने के नाते चार बार विधायक व मंत्री रहे आर के चौधरी जैसे दिग्गज को पटखनी दे दी थी. वहीं, कमोवेश यही हाल 2017 के चुनाव में भी देखने को मिला, जब सपा के अमरीश सिंह पुष्कर को स्थानीय होने का लाभ मिला और उन्होंने बसपा के दिग्गज प्रत्याशी रामबहादुर रावत को कांटे की टक्कर में महज स्थानीय होने के नाते मात दे दी थी.
मतदाताओं का जाति समीकरण
स्थानीय पत्रकार देवेंद्र पांडेय की मानें तो 1951-52 में यूपी विधानसभा के गठन होने के बाद अस्तित्व में आई मोहनलालगंज विधानसभा सीट में करीब साढे तीन लाख से अधिक मतदाता हैं. जिसमें तकरीबन सवा लाख से अधिक दलित मतदाता हैं. इसके अलावा 45000 से अधिक यादव व 35 हजार से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जो हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं. वहीं, समीकरणों के लिहाज से देखें तो विधानसभा क्षेत्र में 8 हजार ब्राह्मण, 15 हजार ठाकुर, 20 हजार लोधी, 20 हजार कश्यप बिरादरी के मतदाताओं के अलावा 55 हजार कुर्मी मतदाता भी हमेशा से अपनी अहम भूमिका निभाते चले आ रहे हैं.
बेरोजगारी, महंगाई और छुट्टा जानवर हैं मुख्य मुद्दा
इस बार के चुनाव में नौजवानों की अहम भूमिका रहेगी. जिनकी संख्या भी तकरीबन 85 हजार हैं, जो रोजगार समेत कई अहम मुद्दों को लेकर मतदान करेंगे. वहीं, यहां के किसान महंगाई, सिंचाई, छुट्टा जानवरों को अपना मुद्दा बता रहे हैं.