लखनऊ :भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा जब लखनऊ के मेयर थे, तब वह नगर निगम को ज्यादा अधिकार देने की पैरवी करते थे. अपने भाषणों और सार्वजनिक सभाओं में वह यह मुद्दा उठाना नहीं भूलते थे. मेयर सम्मेलनों में भी डॉ दिनेश शर्मा ने इस विषय को उठाया और नगर निगमों की लाचारी की दुहाई दी. हालांकि जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और वह खुद डिप्टी सीएम बनें तो उन्हें यह मुद्दा याद नहीं रहा. प्रदेश में भाजपा सरकार का छठा साल है. केंद्र में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार नौ साल पूरे कर चुकी है. इसके बावजूद उन मुद्दों की याद आज किसी को नहीं, जिन्हें विपक्ष में रहते हुए वह खुद उठाया करते थे. गौरतलब है कि नगर विकास अधिनियम का 74वां संशोधन लागू करके नगर निगम को शक्तिशाली बनाया जा सकता है. दिल्ली और मुंबई में यह व्यवस्था लागू है. इस व्यवस्था में अग्निशमन विभाग, लोक निर्माण विभाग और विकास प्राधिकरण जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विभाग नगर निगम के अधीन काम करते हैं.
इन नगर निगमों को दी गईं तमाम शक्तियां : दरअसल, नगर निगम की शक्तियों को लेकर बहस काफी अरसे से चली आ रही है. नगर निगम को शहरों की सरकार कहा जाता है. देश के दिल्ली और मुंबई आदि महानगरों में ऐसे शक्तिशाली नगर निगम हैं, जहां नगर निगमों को तमाम शक्तियां दी गई हैं. ऐसे शहरों में नगर निगम शहर की व्यवस्था से जुड़े समग्र प्रबंध देखते हैं. उन्हें शहर के विकास या अन्य कार्यों के लिए सरकार अथवा अन्य विभागों का मुंह नहीं देखना पड़ता. डॉ दिनेश शर्मा उत्तर प्रदेश में भी इसी प्रकार की व्यवस्था उत्तर प्रदेश के नगर निगमों के लिए भी चाहते थे. यह बात भी दीगर भी है. जब किसी भी संस्था को एक ही स्थान पर कई निर्णय लेने की व्यवस्था दी जाती है, तो वह अपना काम ज्यादा प्रभावी ढंग से कर पाते हैं. वहीं जब कोई मुद्दा व्यवस्था परिवर्तन की बजाए सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए उठाया जाता है, तो उसका हश्र ऐसा ही होता है, जैसा इस विषय में हुआ. वह पार्टी और उसके नेता जब सत्ता में आए तो खुद वह काम करना भूल गए, जिसके लिए वह लगातार मांगें करते रहते थे. राजनीतिक दलों में अक्सर ऐसा विरोधाभास देखने को मिलता है. जब वह विपक्ष में रहते हैं, तो कुछ कहते हैं और सत्ता में आते ही अपना कहा भूल जाते हैं. इस मामले में सभी दलों का रवैया एक सा ही है.