लखनऊ:उत्तर प्रदेश में 38 हजार ऐसे बूथ जहां भाजपा की नजर है. ये 38 हजार ऐसे बूथ हैं जहां भाजपा को साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. अब इनमें से जिन बूथों पर भाजपा को कम अंतर से हार मिली या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जीत मिली थी, उन पर खास नजर रखी जा रही है. बूथों को तीन वर्गों में बांटा गया है. बूथ को जीतने के लिए अलग-अलग मैनेजमेंट हैं.
आखिर इन 38 हजार बूथों पर भाजपा की क्यों है खास नजर? क्या है खास वजह?
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने कमर कस ली है. यूपी के 38 हजार बूथों पर भाजपा की खास नजर है. आखिर इन बूथों पर बीजेपी क्यों फोकस कर रही है, चलिए जानते हैं इस बारे में.
हाल ही में भाजपा के जिला संयोजकों की मीटिंग हुई थी जिसमें तय किया गया कि बूथ मैनेजमेंट की शुरुआत अभी से की जाए ताकि भाजपा विपक्ष से आगे निकल सके. इस बैठक में उन 14 सीटों के जिला संयोजक बुलाए गए थे जहां भाजपा के सांसद नहीं है. फिलहाल 80 सीटों का यह लक्ष्य खासा कठिन है, मगर सपा बसपा के अलग-अलग लड़ने और बसपा का भाजपा के प्रति सहयोगी रुख देखते हुए विशेषज्ञ इस लक्ष्य को खोखला दावा नहीं मान रहे हैं. बसपा ने हाल में ही रामपुर में प्रत्याशी न उतारकर और आज़मगढ़ में उम्मीदवार को उतारकर भाजपा की मदद ही की थी. ऐसे में भगवा खेमा ज्यादा आशान्वित बताया रहा है.
अमेठी का चुनाव 2019 में कांग्रेस हार चुकी है. राहुल गांधी ने अमेठी के साथ वायनाड से भी चुनाव लड़ा था, वह अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गए. मगर वायनाड में उन को जीत मिली इसके बाद में रायबरेली कांग्रेस के लिए अपेक्षाकृत कमजोर सीट हो चुकी है. इस बार माना जा रहा है कि सोनिया गांधी बढ़ती उम्र या बीमारी की वजह से संभवत रायबरेली से चुनाव न लड़ें. ऐसे में गांधी परिवार से अगर प्रियंका गांधी सीट पर नहीं उतरती हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए यहां जीत हासिल करना कोई खास मुश्किल काम नहीं होगी.
भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव 2022 में कई जिलों से गायब हो गई. इसमें आजमगढ़, मऊ, बस्ती, गाजीपुर, अंबेडकरनगर, मुरादाबाद और संभल ऐसे ही जिले हैं जहां भाजपा को सीटें नहीं मिली. इसी तरह से कौशांबी भी एक ऐसा जिला है जहां भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन हारे हुए जिलों में भाजपा कैसे जीतेगी या एक बड़ा सवाल है. उप चुनाव में रामपुर और आजमगढ़ को जीतकर भाजपा ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि उसके बूथ मैनेजमेंट के आगे किसी भी तरह की कोई मुश्किल नहीं है.
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