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...तो सीटों के समीकरण को साधने के लिए बड़ी पार्टियों ने रचा ये चक्रव्यूह ! - Lucknow political news

आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में छोटी पार्टियों संग गठबंधन के लिए बड़ी पार्टियां बेसब्र नजर आ रही हैं. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि अबकी चुनाव में छोटी पार्टियां बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं.

बड़ी पार्टियों ने रचा ये चक्रव्यूह !
बड़ी पार्टियों ने रचा ये चक्रव्यूह !

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Published : Nov 10, 2021, 6:49 AM IST

Updated : Nov 10, 2021, 8:33 AM IST

हैदराबाद:उत्तर प्रदेश की सियासत में छोटी पार्टियों की हैसियत और कद का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि अब बड़ी पार्टियां खुद इनसे गठबंधन कर रही हैं. साथ ही अब बड़ी पार्टियों को इनकी शक्ति और सतही मजबूती की सख्त जरूरत है. क्योंकि सूबे में विधानसभा चुनाव को अब बामुश्किल कुछ माह शेष बचे हैं. ऐसे में आलम यह है कि अब बड़ी पार्टियों में छोटी पार्टियों को अपनी ओर आकर्षित करने की होड़ मची है. वहीं, जोड़-तोड़ के खेल में भाजपा और सपा दोनों ही माहिर हैं और यूपी की सियासी समर में फिलहाल इन्हीं दोनों पार्टियों की सक्रियता अधिक है. हालांकि, कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व सूबे में पार्टी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी महिला कार्ड खेल माहौल मार्केटिंग के जरिए सीटों की गणित को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही हैं.

खैर, इस बदले सियासी माहौल में छोटी पार्टियां बड़ी भूमिका में नजर आ रही हैं. वहीं, अगर पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस तथ्य की भी पुष्टि हो जाती कि आखिर क्यों बड़ी पार्टियां इन्हें इतना अहम मान रही हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022

दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छोटी पार्टियों की मदद से सूबे की सत्ता हासिल की थी. जाति आधारित छोटी पार्टियां किसी भी बड़ी पार्टी का खेल बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखती हैं. यही कारण है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टियों की गठजोड़ की कवायद शुरू हो गई है. इसके साथ ही अब सूबे में जहां बड़ी और छोटी पार्टियों के गठबंधन ने इतिहास रचा है तो वहीं, इसके कई नुकसान भी हुए हैं.

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हालांकि, वास्तविकता यह भी है कि छोटी पार्टियां अकेले के दम पर कोई बड़ा कमाल नहीं कर सकती हैं. लेकिन किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन कर उनकी ताकत जरूर बढ़ा सकती हैं, जिसका फायदा बड़ी पार्टियों को मिलता है. वहीं, यूपी की सियासत में जाति का बोलबाला किसी से छिपा नहीं है. नतीजतन यहां जाति आधारित पार्टियों का बोलबाला है.

आंकड़ों की मानें तो सूबे में 474 पंजीकृत छोटी पार्टियां हैं, जिनमें से दो दर्जन पार्टियां काफी असरदार हैं. पिछड़ा वर्ग में गैर यादव में शामिल जाति आधारित इन छोटी पार्टियों का बड़ा रसूख है. इन्हीं पार्टियों ने पिछले चुनाव में सत्तासीन समजावादी पार्टी और बसपा को सत्ता से दूर करने में बड़ी भूमिका भी निभाई थी.

वहीं, आज भाजपा और सपा दोनों ही पार्टियों को इनकी शक्ति का पूरा अहसास है. इधर, 2017 में अपना दल और सुहेलदेव पार्टी जैसी छोटी पार्टियों के बदौलत ही सूबे में भाजपा सत्ता का सुख भोग रही है. अगर पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो छोटी पार्टियों की ताकत को कोई नकार नहीं सकेगा.

बड़ी पार्टियों ने रचा ये चक्रव्यूह !

2007 के विधानसभा चुनाव में 91 विधानसभा सीटों पर जीत हार का अंतर महज सौ से 3000 वोटों के बीच था. वहीं छोटी पार्टियों के कारण बड़े से बड़ों को बहुत कम अंतरों से विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.

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खैर, उत्तर प्रदेश का यह सियासी इतिहास रहा है कि जब भी यहां किसी बड़ी पार्टी ने छोटी पार्टी से हाथ मिलाया तो दोनों की ही किस्मत बदली है और ठीक इसके उलट जब-जब दो बड़ी पार्टियों ने दोस्ती की है, उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा है.

2017 में भाजपा ने इन छोटी पार्टियों संग किया था गठबंधन

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्वांचल में प्रभावी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन कर 403 में से 324 सीटें हासिल की. इस चुनाव में अपना दल को 11 सीटें और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 8 सीटें दी गई थीं, वहीं चुनाव में अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली तो ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को 4 सीटों पर जीत मिली थी.

सियासी विशलेषकों के मुताबिक, ये छोटी पार्टियां ही भाजपा की पूर्वांचल में ताकत हैं. कुर्मी जाति के साथ ही कोईरी, काछी, कुशवाहा जैसी जातियों पर भी अपना दल (सोनेलाल) का असर होता है. इन्हें आपस में जोड़ दें तो पूर्वांचल की वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, कानपुर, कानपुर देहात की सीटों पर यह वोट बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.

इस कारण गठबंधन से अब तक कांग्रेस ने बनाई दूरी

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सतारूढ़ समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. यूपी के लड़के पंच लाइन के साथ अखिलेश और राहुल की जोड़ी जोर-शोर के साथ मैदान में उतरी थी, लेकिन कोई कमाल नहीं कर पाई. दोनो पार्टियों में समझौते के बाद कांग्रेस 105 सीटों पर और समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव नतीजों में सपा 232 सीट से घटकर 47 पर आ गई तो कांग्रेस सात सीटों पर सिमट कर रह गई थी. लेकिन पिछले चुनाव में प्रियंका आज की तरह सूबे की सियासत में सक्रिय नहीं थी. पर जब से उन्होंने यूपी की कमान संभाली है, तब से सूबे की योगी सरकार की चुनौतियां बढ़ गई हैं हाल में हुए लखीमपुर हिंसा मामले में उनकी सक्रियता को देखते हुए उनकी सूबे में लोकप्रियता बढ़ी है.

बड़ी पार्टियों ने रचा ये चक्रव्यूह !

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वहीं, पार्टी सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की सोच रही है. सूत्रों की मानें तो क्षेत्रीय आधार जाति समूहों वाली छोटी पार्टियों से प्रदेश कांग्रेस की बातचीत जारी है. अगर बात बनी तो वह उनके सिंबल पर चुनाव लड़ सकते हैं.

...तो इसलिए सपा कर रही छोटी पार्टियों संग गठबंधन!

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन का अनुभव अच्छा नहीं रहा है. इसलिए अब वे छोटी पार्टियों को साथ ले कर चलने की बात कह रहे हैं. इस बार समाजवादी पार्टी ने जनवादी और महान दल जैसी पार्टियों के अलावा राजभर की पार्टी भासपा के साथ गठबंधन किया है.

महान दल की पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुशवाहा, शाक्य, सैनी और मौर्य समाज के लोगों में अच्छी पकड़ है. चौहान वोट बैंक की पार्टी जनवादी दल भी वोट बैंक के लिहाज से मजबूत पकड़ वाली पार्टी है. वहीं, पिछली बार की तरह इस बार भी रालोद से समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो सकता है, क्योंकि किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में इस गठबंधन से उनको काफी फायदा भी होगा. वहीं, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे 2022 के विधानसभा चुनाव में अकेले ही चुनावी मैदान में उतरेंगी.

एआईएमआईएम के खिलाफ प्रत्याशी देगी पीस पार्टी

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पीस पार्टी ने एलान किया है कि पार्टी अकेले ही सूबे के 250 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. पिछले दिनों पीस पार्टी के प्रवक्ता शादाब चौहान ने बताया था कि पीस पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेगी. उन्होंनेे यह भी कहा कि एआईएमआईएम ने 2017 के विधानसभा चुनावों में उनके पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशियों को उतारकर भारी गलती की थी.

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Last Updated : Nov 10, 2021, 8:33 AM IST

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