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मेरे हिस्से की जो सांसें हैं, वह तुम रख लो... अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों का दर्द 'बंटवारा और विरासत' नाटक में समेटा

लखनऊ के वाल्मीकि सभागार में मंचित नाटक बटवारा और विरासत के माध्यम से कलाकारों ने अंतर्मन में झांकने की दृष्टि व उत्साह की राह दिखाई. बदलते परिवेश में अतीत की स्मृतियों को ताजा करने वाले नाटक की दर्शकों ने भी सराहना की.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 1, 2023, 4:50 PM IST

Updated : Dec 1, 2023, 7:42 PM IST

लखनऊ के वाल्मीकि सभागार में मंचित नाटक के कुछ अंश.

लखनऊ : ‘यह तो दुनिया की रीत है, बंटवारा तो होता ही रहता है, औरत के साथ कोई भी रिश्ता हो, धीरे-धीरे वह मां का रूप ले ही लेती है. बुढ़ापा और पैसे की कमी आदमी को कोढ़ का रोग लगा देती है. मेरे हिस्से की जो सांसें हैं, वह तुम रख लो... मेरा इंतजार करना… कुछ ऐसे ही संवादों के जरिए कलाकारों ने परिवार में अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों की व्यथा बयां कीं. अमुक आर्टिस्ट ग्रुप के नाटक ‘बटवारा और विरासत’ की प्रस्तुति गुरुवार को वाल्मीकि सभागार में देखने को मिली. नाटक का मंचन उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रसमंच योजना के अंतर्गत हुआ. अनिल मिश्रा 'गुरुजी' के रंग आलेख, परिकल्पना एवं निर्देशन में हुए नाटक में कहानी की लेखिका नोएडा की सिनीवाली और विरासत की लेखिका आशा पांडेय रहीं. मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार आलोचक प्रोफेसर नलिन रंजन ने दीप प्रज्जवलन कर किया.

लखनऊ के वाल्मीकि सभागार में मंचित नाटक का दृश्य.

नाटक के शुरुआती हिस्से में लेखिका सिनीवाली की कहानी ‘बटवारा’ को मंचित किया गया. जो वर्तमान के मौजूदा हालात में वृद्ध दंपती बालकृष्ण और सुभाषिनी की आपबीती होती है. जहां पीड़ा है, दर्द है और एक ही घर में रहकर बटवारे का दंश है. नाटक के दूसरे हिस्से में महाराष्ट्र अमरावती की लेखिका आशा पांडेय की कहानी ‘विरासत’ को कलाकारों ने मंच पर बखूबी उतारा. ‘विरासत’ कहानी गांव की परंपरा, संस्कृति, विरासत को बचाए रखने की जद्दोजहद है. जहां मुख्य किरदार ‘सुग्गन’ मुंबई से गांव वापस आता है तो देखता है कि गांव बचा नहीं और जो बचे भी हैं, वह शहरों में तब्दील होते जा रहे हैं. तालाब-कुआं-गड़ही-पेड़ का वजूद खत्म हो रहा है. लोगों ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया है. सुग्गन ‘आप जहां पैदा होते हैं, रचे-बसे होते हैं, वह आपकी मां होती है. मैं आज वापस अपनी मां के पास आ रहा हूं. बहू की कोख फलती-फूलती रहे, मेरे जैसे नहीं कि एक हुआ फिर ऊसर हो गई. इतने साल बाद गांव लौटा है, हंसी-खुशी जिंदगी जी, चैन से रह. तुम्हीं तो कहते हो कि हमें अपने बच्चों को विरासत में वैसा ही गांव सौंपना है. जैसे तुम्हीं तो कहते हो कि हमें अपने बच्चों को विरासत में वैसा ही गांव सौंपना है, जैसे हमारे पुरखों ने हमें सौंपा.

इन किरदारों के नाटक में भरे अभिनय के रंग :आमिर आमिर मुख्तार के संचालन में हुए नाटक में बालकृष्ण के किरदार में अरविन्द सिंह, सुभषिनी के किरदार में अनामिका शुक्ला, सुग्गन के किरदार में शोभित राजपूत व अरशद अली ने अभिनय किया. प्राची श्रीवास्तव, ज्योति सिंह, वैभव/ आन्या, रिंकू, व्याख्या शर्मा (बाल कलाकार), आदित्य सिंह (बाल कलाकार), अर्चना जैन, दानिश अली अंसारी, गिरिराज किशोर शर्मा, प्रणव श्रीवास्तव, शशांक मिश्रा, आशुतोष मौर्य, रीता सिंह, अनीता सिंह, विष्णु पाण्डेय, कंवलजीत सिंह के अभिनय को दर्शकों ने सराहा. लाइट डायरेक्शन सुरेन्द्र तिवारी, मेकअप दिनेश अवस्थी, विक्रम सिंह, मंच सामाग्री संजय त्रिपाठी, संतोष प्रजापति, दृश्यांकन श्याम जी लोधी, कॉस्ट्यूम अनामिका शुक्ला, सहयोगी में रामचरन / अमित तेनवंशी का योगदान रहा. नाट्य मंचन के पहले रंगकर्मी अभय गुप्ता को मुख्य अतिथि प्रो नलिन रंजन ने रंगाचार्य सम्मान से सम्मानित किया.

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Last Updated : Dec 1, 2023, 7:42 PM IST

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