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खोया जनाधार वापस पाने के लिए मायावती ने शुरू की कवायद - समाजवादी पार्टी

2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections 2024) में बहुजन समाज पार्टी अपनी वापसी चाहती है. मायावती पार्टी पदाधिकारियों की मंडल वार बैठकर कर रही हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अपने अतीत के सबसे बुरे दौर से गुजरी. अब बसपा प्रमुख मायावती के भावी कदम ही बताएंगे कि वह कितनी कामयाब हो पाएंगी. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का राजनीतिक विश्लेषण...

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Published : Oct 25, 2022, 8:57 PM IST

Updated : Nov 4, 2022, 7:36 PM IST

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर अपनी खोई ताकत वापस पाना चाहती हैं. ‌ इसके लिए उन्होंने कोशिशें आरंभ कर दी हैं. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections 2024) में बहुजन समाज पार्टी अपनी वापसी चाहती है. इसीलिए मायावती पार्टी पदाधिकारियों की मंडल वार बैठकर कर रही हैं. यह बात और है कि बसपा के लिए वापसी आसान नहीं है. पिछले 15 साल में उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. सूबे की जनता ने बसपा, सपा और भाजपा यानी प्रदेश के सभी प्रमुख दलों को आजमा कर देखा. तीनों दलों को पूर्ण बहुमत देकर उनका शासन भी देखा. लोगों को रास आ रहा है, तो भाजपा का शासन. इसीलिए 2022 के विधानसभा चुनावों में योगी दोबारा सत्ता में लौटने में कामयाब हुए हैं.



2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का दांव चला था. मायावती का यह दांव सफल भी रहा. बसपा की सरकार में मायावती ने एक सख्त प्रशासक के रूप में अपनी छवि बरकरार रखी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों और कई घोटालों में मंत्रियों की संलिप्तता ने सरकार को बदनाम किया. लोकायुक्त जांच में कई मंत्री दागी पाए गए. कुछ को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. स्वाभाविक है कि इसका असर बसपा सरकार पर पड़ा. 2012 के चुनाव में लोगों ने बसपा और भाजपा को नकार कर समाजवादी पार्टी की सरकार चुनी. सपा सरकार में नेतृत्व मिला युवा नेता अखिलेश यादव को. यह बात और है कि अखिलेश यादव भी जनता की उम्मीदें पूरी नहीं कर सके और 2017 के चुनाव में लोगों ने सपा सरकार भी बदल दी और मौका दिया भारतीय जनता पार्टी की सरकार को. भाजपा ने कट्टर हिंदुत्व की छवि वाले योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया और संदेश दिया कि भ्रष्टाचार और अपराध पर सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएगी. अपराधियों के खिलाफ योगी सरकार ने पहले दिल से ही सख्त कदम उठाए कोर्ट अपनी छवि को और मजबूत बनाया.


हिंदुत्व का एजेंडा लेकर आगे बढ़ रही भाजपा को रोकने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में अनोखा गठबंधन हुआ. इस गठबंधन के लिए मायावती ने पुरानी अदावत को किनारे रख दिया. राजनीतिक विश्लेषक समझते थे कि यह गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा बदलने वाला साबित होगा. हालांकि जब चुनाव नतीजे आए, तो हर कोई हैरान रह गया. इस गठबंधन में सपा का वोट तो बसपा के लिए ट्रांसफर हुआ, लेकिन बसपा का वोट सपा को नहीं मिल सका. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन को महज 15 सीटें ही मिलीं. इन 15 सीटों में से 10 बसपा के खाते में गईं, तो पांच समाजवादी पार्टी को मिलीं. इस लोकसभा चुनाव में भी भाजपा बहुत बड़ी ताकत बनकर उभरी. स्वभाविक है कि भाजपा को रोकने का सपना देख रही सपा और बसपा निराश ही हुए. कुछ दिन बाद गठबंधन की नाकामी का आरोप सपा पर लगाकर मायावती ने इससे किनारा कर लिया. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अपने अतीत के सबसे बुरे दौर से गुजरी. उसे सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा. स्वाभाविक बात है कि ऐसे में बसपा के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है और मायावती किसी तरह अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती हैं.



वर्तमान परिस्थितियों में मायावती को लगता है कि वह अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ ही अल्पसंख्यक वोट बैंक पर पकड़ बनाने में कामयाब हो सकें, तो उन्हें उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिल सकती है. यही कारण है कि उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो बड़े मुस्लिम चेहरों इमरान मसूद और पूर्वांचल में गुड्डू जमाली को पार्टी से जोड़कर अल्पसंख्यक समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश की है. मायावती अपने संगठन की क्षेत्रवार बैठकर भी कर रही हैं. ऐसा माना जाता है कि बसपा अपने काडर की बैठकें और निचले स्तर तक माहौल बनाने की कोशिश लगातार जारी रख रही है. पार्टी का परंपरागत वोट बैंक और काडर तो है ही. यदि मायावती ने कायदे से मेहनत कर ली तो इसमें दो राय नहीं कि यह काडर फिर से उठ खड़ा होगा. पिछले चुनावों में मायावती ने कई गलतियां की हैं. बसपा कभी जनता से जुड़े मुद्दों पर सड़कों पर नहीं उतरती है. यही नहीं पार्टी प्रमुख मायावती भी सिर्फ चुनाव के समय ही दिखाई देती हैं. बसपा को अपनी इन कमियों को दूर करना होगा. लोगों को यह संदेश देना होगा कि पार्टी लोगों के लिए संघर्ष करने के लिए कभी भी पीछे नहीं थी. हाल के दिनों में हुई बैठकों में मायावती ने जिस तरह से सतीश मिश्रा से दूरी बनाई है, उससे लगता है कि बसपा नए समीकरणों पर ही आगे बढ़कर अपना भविष्य देखती है. अब बसपा प्रमुख मायावती के भावी कदम ही बताएंगे कि वह कितनी कामयाब हो पाएंगी.

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Last Updated : Nov 4, 2022, 7:36 PM IST

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