लखनऊ:दवाओं के प्रभाव को लेकर आयुर्वेद-एलोपैथ एक्सपर्ट में आए दिन बहस होती रहती है. इसमें एक-दूसरे की पद्धति को कमतर बताने के तर्कों की झड़ी लग जाती हैं. वहीं मनोरोग के इलाज में पुरातन चिकित्सा, नई पद्धति के बराबर साबित हुई है. राजधानी लखनऊ के विशेषज्ञों के शोध पर मुहर लग गई है. यहां तैयार किया गया 'आयुर्वेदिक घृत' मरीजों को तनाव मुक्त करने में कारगर पाया गया है.
राजकीय आयुर्वेद कॉलेज और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के चिकित्सकों ने मिलकर मोनोरोग पर रिसर्च किया. आयुर्वेद कॉलेज के डॉ. संजीव रस्तोगी के मुताबिक स्टडी के लिए 'प्राइमरी डिप्रेशन' विषय को चुना गया. कारण, मनोरोग से जुड़ी यह बीमारी तेजी से आमजन पर हावी हो रही है. इसके लिए केजीएमयू के मनोरोग विभाग के डॉ. अनिल निश्छल को शामिल किया गया. दोनों जगह ओपीडी में आने वाले वाले प्री-डिप्रेशन के 52 मरीजों को रजिस्टर्ड किया गया. इन्हें 26-26 के दो ग्रुपों में बांटा गया. मरीजों के एक ग्रुप को आयुर्वेद, दूसरे ग्रुप को एलोपैथ की दवा दी गईं.
डॉ. संजीव रस्तोगी के मुताबिक चरक संहिता के शास्त्रीय योग से जड़ी-बूटियों से घृत तैयार किया गया. इसमें गाय के घी में लहसुन, त्रिफला, त्रिकुट चूर्ण आदि मिलाया गया. आयुर्वेद ग्रुप के रोगियों को सुबह-शाम एक-एक चम्मच दूध या खाने के साथ डोज लेना अनिवार्य किया गया. वहीं गुनगुना कर एक-एक बूंद (नस्य क्रिया) नाक में डलवाया गया. यानी कि ओरल और नोजल दोनों तरह से डोज दी गईं. इसके बाद 4 और 6 हफ्तों पर परिणामों का आंकलन किया गया. वहीं केजीएमयू में पंजीकृत रोगियों को एलोपैथ की डोज दी गई. इसमें विशेषज्ञ द्वारा तैयार घृत-रोग पर एलोपैथ के बराबर असर हुआ.