उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

केजरीवाल का यूपी में पकड़ बनाना आसान नहीं पर मुश्किल भी नहीं! - यूपी चुनाव का केजीरवाल ने किया एलान

यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है. प्रदेश में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एलान के बाद विश्लेषकों ने प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी हैं.

यूपी में चुनाव लड़ेंगे अरविंद केजरीवाल.
यूपी में चुनाव लड़ेंगे अरविंद केजरीवाल.

By

Published : Dec 17, 2020, 4:02 PM IST

लखनऊः दिल्ली में लोकप्रिय योजनाओं के जरिए धाक जमाने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर भी सियासी जमीन तलाश रहे हैं. इसी चाह के साथ केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में 2022 का विधान चुनाव लड़ने की घोषणा की है. हालांकि केजरीवाल का देश के सबसे बड़े सूबे में जमीन पाना इतना आसान नहीं दिख रहा है. कम से कम विश्लेषकों की भी यही राय है. हालांकि आम आदमी पार्टी के इस एलान को यह कहकर सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता. राजनीतिक दलों खासकर सत्ताधारी दल की प्रतिक्रिया इस बात का प्रमाण है.

पहले दिल्ली को संभाल लें केजरीवालः डिप्टी सीएम
केजरीवाल के एलान के बाद यूपी के डिप्टी सीएम ने तुरन्त कहा कि केजरीवाल पहले दो करोड़ वाली दिल्ली को संभाल लें फिर 24 करोड़ वाले उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की सोचें. यह कहना ठीक नहीं है कि दो करोड़ की आबादी वाले राज्य का मुख्यमंत्री 24 करोड़ वाले सूबे की कमान नहीं संभाल सकता. देश में ऐसे कई उदाहरण विद्यमान हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद कुर्सी संभालने से पहले एक सांसद थे. पार्टी संगठन में भी उन्होंने ऐसी कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाई थीं. नरेंद्र मोदी की बात करें तो वह भी गुजरात के सीएम रहते प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए हैं.

सत्तासीन भाजपा का बूथ पर है संगठन
हां, इतना जरूर है कि चुनाव लड़ने के लिए मजबूत संगठन चाहिए. वह आम आदमी पार्टी के पास नहीं है. मजबूत संगठन की जरूरत उस समीकरण में और बढ़ जाती है जब सामने, सपा, बसपा और भाजपा जैसे दल हों. यूपी में इन सभी दलों का संगठन है. भाजपा का तो बूथ स्तर पर तानाबाना खड़ा है. उत्तर प्रदेश में करीब एक लाख 63 हजार पोलिंग बूथ हैं. 90 प्रतिशत से अधिक बूथों पर भाजपा का संगठन खड़ा है. प्रत्येक बूथ पर भाजपा के 21 सक्रिय कार्यकर्ता हैं. ऐसे में भाजपा से लड़ने के लिए आप के पास भी मजबूत संगठन होना चाहिए. संगठन नहीं होने की स्थिति में पार्टी चुनाव में प्रत्याशी तो उतार सकती है लेकिन सफलता मिलना कठिन होगा.

कमजोर संगठन का खामियाजा भुगत चुके हैं केजरीवाल
संगठन नहीं होने का खामियाजा आम आदमी पार्टी भुगत चुकी है. अरविंद केजरीवाल वाराणसी से 2014 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के सामने लड़ चुके हैं. क्या हश्र हुआ, सबको पता है. यूपी में जमीन तलाशने का एक और कारण आम आदमी पार्टी के नेताओं का यूपी से जुड़ाव होना भी बताया जा रहा है. दरअसल आप के सांसद व यूपी प्रभारी संजय सिंह का नाता उत्तर प्रदेश से ही है. वह यहीं के रहने वाले हैं. पिछले दिनों उन्होंने कानपुर बिकरू कांड से लेकर किसानों के मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला बोला. संजय सिंह ने रणनीति के तहत उस जाति (ब्राह्मण) को तोड़ने की कोशिश की जो भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. उनके इन प्रयासों का जनता पर असर कितना पड़ा यह तो पता नहीं लेकिन भाजपा और उसकी योगी सरकार ने इस मुस्तैदी से कम किया. सूबे में सात सीटों पर हुए उपचुनाव में छह पर भाजपा ने जीत दर्ज की.

सपा बसपा के लिए बढ़ेगी चुनौती
सूबे की करवट लेती सियासत पर वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी कहते हैं कि केजरीवाल जल्दबाजी कर रहे हैं. चुनाव लड़ने से पहले उन्हें यहां संगठन का विस्तार करना चाहिए. बिना संगठन के इतने बड़े राज्य जिसकी छठे देश के बराबर जनसंख्या हो, वहां चुनाव लड़ना बेहद कठिन होगा. केजरीवाल ने योगी सरकार को फेल बताया है. मतलब साफ है कि वे भाजपा का विकल्प बनने की इच्छा रखते हैं. भाजपा से लड़ने के लिए आप के पास वैसी ही क्षमता वाला संगठन चाहिए. यह उसके पास नहीं है. इसकी परवाह किये बगैर यदि वह चुनाव लड़ भी जाते हैं तो केजरीवाल योगी का विकल्प बनें न बनें लेकिन सूबे में मौजूद विपक्ष का खेल जरूर बिगाड़ देंगे.

आप अकेले या गठबंधन करके लड़ेगी चुनाव
उत्तर प्रदेश में भाजपा के अलावा सपा, बसपा, कांग्रेस जैसे बड़े दल पहले से सक्रिय हैं. छोटे दलों में राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, शिवपाल यादव की प्रसपा, अपना दल और महान दल भी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं. वहीं ओवैसी की पार्टी भी गुणा गणित कर रही है. ओवैसी छोटे दलों को जोड़कर एक नया फ्रंट तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं. यह फ्रंट बनने में सफल हुआ तो बड़ा उलटफेर हो सकता है. ऐसे में यदि आम आदमी पार्टी भी सूबे की सियासत में एंट्री करती है तो सवाल खड़ा होता है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी या किसी के साथ गठबंधन करके. सपा और बसपा का आप के साथ गठबंधन की संभावना बहुत कम ही प्रतीत होती हैं. इनसे अलग लड़ने पर सूबे के दोनों बड़े विपक्षी दलों को नुकसान ही दिख रहा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details