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पूर्व सैनिक की पत्नी को 33 साल बाद मिला न्याय, सेना कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिव्यांगता और फेमिली पेंशन देने दिया आदेश - सशस्त्र बल अधिकरण लखनऊ

सेना कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए एक दिवंगत पूर्व सैनिक की पत्नी को दिव्यांगता पेंशन और फेमिली पेंशन देने के लिए केंद्र सरकार को दिया आदेश. कोर्ट ने कहा कि सराकार सैनिकों के साथ उदारता पूर्ण रुख अपनाए. इस मामले में पूर्व सैनिक की पत्नी ने 33 साल तक लड़ाई लड़ी, जिसके बाद उसे न्याय मिला.

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Published : Sep 1, 2021, 10:54 PM IST

लखनऊ : सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए बुधवार एक पूर्व सैनिक की पत्नी को दिव्यांगता पेंशन और फेमिली पेंशन देने का आदेश भारत सरकार को दिया. इस मामले में जवान की पत्नी 33 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी जिसके बाद उन्हें न्याय मिल सका.

ये था पूरा मामला
वादी आशिया बेगम के पति हिदायत उल्ला सन 1965 में सेना में भर्ती हुए थे. उनको सन 1988 में लगभग 23 वर्ष की नौकरी के बाद सेप्टि थ्राम्बो एम्बोलिज्म की बीमारी हो गई. इसके बाद सेना के मेडिकल बोर्ड ने यह कहकर उनको कार्यमुक्त कर दिया. इसके बाद सैनिक हिदायत उल्ला ने करीब 31 साल तक सेना से पत्राचार किया. लेकिन जब उनको न्याय नहीं मिला. जिसके बाद सन 2019 में सैनिक हिदायत उल्ला ने सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ पीठ में वाद दायर किया था. इसी बीच 2019 में ही सैनिक हिदायत उल्ला की मृत्यु हो गयी. सैनिक हिदायत उल्ला निधन के बाद उनके पत्नी आशिया बेगम ने अपनी लड़ाई जारी रखी.

सेना कोर्ट ने दिया आदेश

इस मामले में वादी आशिया बेगम की ओर से अधिवक्ता विजय पांडेय ने मेडिकल आधार पर सेवामुक्त किए जाने के मामलों पर बहस करते हुए कहा कि दिवंगत जवान जब सेना में भर्ती हुआ था तब मेडिकल बोर्ड ने उनका परीक्षण किया था. जिसमें यह बीमारी नहीं थी. ऐसे में उनको सेवामुक्त करते समय हुई बीमारी का दायित्व भी सेना का ही है. इस दलील पर अधिकरण के न्यायिक सदस्य उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य अरु अभय रघुनाथ कार्वे की पीठ ने वादिनी खण्ड-पीठ ने कहा कि प्रार्थिनी दिवंगत जवान की दिव्यांगता पेंशन पाने की हकदार है. उसके पति की मृत्यु की तिथि से वादिनी फैमिली पेशन की भी हकदार होगी, जिसे चार महीने के अंदर न दिया गया तो आठ प्रतिशत ब्याज भी सरकार को देना होगा. इस मामले पर सुनवाई अधिकारण में उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्डपीठ ने की.

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