लखनऊ: अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अधिवेशन में दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन ली गई हैं. चुनाव प्रक्रिया में सिर्फ अनुप्रिया पटेल ने ही नामांकन किया था, जिन्हें निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक अपना दल परिवार से शुरू हुई पार्टी परिवार के बीच ही सिमट कर रह गई. राजनीतिक विश्लेषक जय प्रकाश पाल (Political Analyst Jai Prakash Pal) कहते हैं कि वैसे तो क्षेत्रीय दलों का परिवारवाद से ग्रसित होना अचंभित नहीं करता है, लेकिन जिस समाज के लिए अनुप्रिया पटेल राजनीति करती आई हैं और लड़ाई लड़ने का दावा करती हैं, तो उन्हें उस समाज के लोगों को आगे लाकर एक संदेश देना चाहिए था. वो खुद केंद्र में मंत्री हैं, पति को योगी सरकार में मंत्री बना ही चुकी हैं, तो इस बार अध्यक्ष पद परिवार से इतर किसी अन्य को मौका देतीं, तो एक अच्छा संदेश जा सकता था.
राजनीतिक विश्लेषक राघवेंद्र त्रिपाठी (Political analyst Raghavendra Tripathi) कहते हैं कि अनुप्रिया पटेल अपना दल के अध्यक्ष इसमें ताजुब की बात नहीं है. जितने भी क्षेत्रीय दल हैं, सभी मे परिवार बाद व वंशवाद हावी है. कोई भी क्षेत्रीय दल में देख लीजिए, जिसने पार्टी बनाई, वही उस पार्टी का अध्यक्ष होगा. सरकार में आ गए तो वही मंत्री होगा. इसी तरह अपना दल (एस) में भी है. अनुप्रिया अध्यक्ष हैं व केंद्र में मंत्री हैं और उनके पति अशीष पटेल योगी सरकार में मंत्री हैं. क्षेत्रीय दल की भुमिका उत्तर प्रदेश में इतनी ही है कि वो परिवारवाद, क्षेत्रवाद व जातिवाद को बढ़ावा देते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय (Political analyst Vijay Upadhyay) कहते हैं कि राजनीतिक दलों में एक समस्या है कि जो भी नेता पार्टी बनाता है, उन्हीं के परिवार का या वह खुद दल के अध्यक्ष बनते हैं. विश्लेषक कहते हैं कि यह गलत परंपरा है, लेकिन यह परंपरा बनी हुई है. तमाम आलोचनाओं के बाद कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराया और संगठन से एक नए चेहरे को परिवार से बाहर के व्यक्ति को बनाया. मुझे लगता है कि सभी दलों को चाहे वह छोटे दलों या बड़े दलों सभी को पार्टी के भीतर संगठन चुनाव कराने चाहिए और नए लोगों को मौका देना चाहिए. हालांकी कई बार ऐसा होता है कि आपस में टकराव की स्थिति आ जाती है. इसलिए यह मजबूरी भी होती है कि परिवार से ही किसी को पार्टी की जिम्मेदारी दी जाती है.
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