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वैक्सीन की डबल डोज को लेकर हुई रिसर्च, दोनों डोज के बाद 93.7 फीसदी लोगों में मिली एंटीबॉडी - कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज

लखनऊ के एरा मेडिकल कॉलेज में कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज को लेकर हुए शोध के दौरान यह पता चला है कि डबल डोज लेने वाले 93.7 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली है. शोध से यह भी सामने आया कि समय के साथ-साथ शरीर में एंटीबॉडी बनने की संभावना बनी रहती है. चार माह की स्टडी के बाद यह पाया गया कि इन 17 में से 14 लोगों में चार माह विकसित एंटीबाडी मिली.

वैक्सीन की डबल डोज को लेकर हुई रिसर्च
वैक्सीन की डबल डोज को लेकर हुई रिसर्च

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Published : Sep 2, 2021, 9:02 PM IST

लखनऊ: कोरोना की वैक्सीन लोगों के लिए कितना असरदार है, इसको लेकर एरा मेडिकल कॉलेज लखनऊ में शोध हुआ है. शोध में पता चला कि कोविशील्ड की डबल डोज लेने वाले 93.7 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली है. वहीं महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में एंटीबॉडी का लेवल हाई रहा है.

246 स्वास्थ्यकर्मियों पर हुआ शोध

शोध टीम के सदस्य और एडिशनल मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. सिद्धार्थ चंदेल के मुताबिक वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके कुल 246 स्वास्थ्यकर्मियों का लॉट्री के माध्यम से चयन किया गया. इसके बाद उनके शरीर में बनने वाली विकसित एंटीबॉडी पर रिसर्च शुरू किया गया. चयनित स्वास्थ्य कर्मियों में 34 डॉक्टर, 35 नर्सिंग स्टाफ, 65 पैरामेडिकल, 71 हाउस कीपिंग और 42 सुरक्षाकर्मी शामिल रहे. इन सभी पर कोविड एंटीबॉडी का आंकलन 1 से 4 महीने के अंतराल पर किया गया. यह सभी कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके थे. शोध में 156 पुरुषों और 90 महिलाओं को शामिल किया गया. इनमें 32.5 फीसदी स्वास्थ्यकर्मी 40 से 49 आयु वर्ग के और 11 यानि 4.5 फीसदी 60 वर्ष से अधिक के थे.

बुजर्गों में कम बन रही एंटीबॉडी

वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के एक माह के बाद की रिसर्च में 93.1 प्रतिशत यानि 229 लोगों में एंटीबॉडी पायी गयी. सिर्फ 17 लोग यानि 6.9 फीसदी लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं मिली. जिन स्वास्थ्यकर्मियों में एंटीबाडी नहीं मिली उनमें 27.3 फीसदी 60 वर्ष से ऊपर के थे. 18 से 29 वर्ष आयु के मात्र मात्र 1.5 फीसदी स्वास्थ्य कर्मी थे. इन 17 लोगों में 6 महिलाएं हैं.

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शोध के फैक्ट

संख्या के लिहाज से अधिकतर महिलाओं में एंटीबाडी विकसित होना पाया गया, जबकि एंटीबाडी का अधिक स्तर पुरुषों में मिला. शोध में 18 से 79 वर्ष के लोगों को शामिल किया गया था. बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं में अच्छी एंटीबॉडी बनी. जिन 17 (6.9 प्रतिशत) लोगों में एंटीबाडी नहीं पायी गई थी उसमें 60 वर्ष से अधिक लोगों की संख्या 27.3 प्रतिशत थी, जबकि 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या मात्र 1.5 प्रतिशत थी. शोध से यह भी सामने आया कि समय के साथ-साथ शरीर में एंटीबॉडी बनने की संभावना बनी रहती है. चार माह की स्टडी के बाद यह पाया गया कि इन 17 में से 14 लोगों में चार माह विकसित एंटीबाडी मिली.

शोध टीम में ये लोग रहे शामिल

शोध टीम में एरा विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. फरजाना मेंहदी, प्रधानाचार्य डॉ. एमएमए फरीदी, विभाध्यक्ष मेडिसिन विभाग डॉ. जलीस फातिमा, प्रोफेसर शारिक अहमद, डॉ. वरुण मल्होत्रा, डॉ. हिना खान और डॉक्टर दिलशाद अली रिजवी शामिल थे.

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