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बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण मामले में जवाब तलब, अधिकारियों पर नहीं की गई कोई कार्रवाई

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण मामले में एलडीए से जवाब तलब किया है. मामले की अगली सुनवाई 9 फरवरी को होगी.

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Published : Dec 12, 2022, 8:50 PM IST

लखनऊ :हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण मामले में एलडीए से जवाब तलब किया है. मामले की अगली सुनवाई 9 फरवरी को होगी. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल व न्यायमूर्ति रजनीश कुमार (Chief Justice Rajesh Bindal and Justice Rajnish Kumar) की खंडपीठ ने लेफ्टिनेंट कर्नल अशोक कुमार (सेवानिवृत्त) की याचिका समेत चार याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिकाओं में राजधानी में बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण का मामला उठाया गया है. कहा गया है कि शहर की तमाम बहुमंजिला इमारतें अवैध तरीके से बनाई गई हैं. कुछ में स्वीकृति से अधिक फ्लोर बना दिए गए हैं तो कुछ में अन्य अवैध निर्माण किया गया है.

यह भी कहा गया है कि एलडीए ने इनमें से कुछ अवैध निर्माणों की पहचान की हुई है, लेकिन आज तक एक भी के खिलाफ धवस्तीकरण के कदम नहीं उठाए गए हैं. यह भी दलील दी गए है कि अवैध निर्माणों में अधिकारियों की बराबर की मिली भगत है, लेकिन अधिकारियों के खिलाफ संतोषजनक कार्रवाई नहीं हुई है. न्यायालय ने याचिकाओं पर सुनवाई के उपरांत एलडीए को विस्तृत जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई का भी ब्यौरा तलब किया है.

हाईकोर्ट ने कहा, दोषी अधिकारियों को बचाने का किया जा रहा प्रयास : लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने कानपुर रोड के पास देवपुर पारा में करोड़ों रुपये खर्च कर गरीबों के लिए आश्रयहीन योजना के अंतर्गत शौचालय, रसोई और स्नानघर जैसी मूलभूत सुविधाओं के बिना बनाए आवासों के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मामले में दोषी अधिकारियों को बचाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. न्यायालय की यह प्रतिक्रिया राज्य सरकार के उस जवाब के बाद आई. इसमें सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि एलडीए ने जिन अधिकारियों के खिलाफ प्रस्तावित आरोप पत्र भेजे हैं, वे इस समय शासन में उपलब्ध नहीं हैं. न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए. सरकार को आदेश दिया है कि सरकार एलडीए के प्रस्तावित आरोप पत्र का स्टेटस बताए. साथ ही दूसरे अधिकारियों की इस मामले में संलिप्तता पर भी जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी.

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति रजनीश कुमार (Chief Justice Rajesh Bindal and Justice Rajnish Kumar) की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2000 में एलडीए ने देवपुर पारा में आश्रयहीन लोगों के लिए 1968 आवास बनाए थे, लेकिन इन आवासों में टॉयलेट और किचन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं और इन आवासों के निर्माण कार्य में तमाम अनियमितताएं बरती गईं, परिणामस्वरूप ये दस वर्ष में ही जर्जर होने लगे. राज्य सरकार द्वारा यह बताए जाने पर कि अधिकारियों के खिलाफ उसे भेजे गए आरोप पत्र उपलब्ध नहीं हैं. न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है इस मामले में एलडीए और सरकार के दूसरे अधिकारी भी शामिल हैं. न्यायालय ने कहा कि 2014 में ही आरोप पत्र शासन को भेजा गया. लेकिन न तो एलडीए से किसी ने इसके बारे में पता किया और न ही सरकार के स्तर पर कोई कार्यवाही हुई. न्यायालय के आदेश पर पिछली सुनवाई पर एलडीए ने कोर्ट को बताया था कि मुख्य अभियंता विवेक मेहरा समेत अधिशाषी अभियंता एके गुप्ता व एमएस गुरुदित्ता, सहायक अभियंता फुल्लन राय व एसएस वर्मा तथा अवर अभियंता बीके राय व देवेन्द्र गोस्वामी को मामले में प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है.

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