लखनऊ : पसमांदा मुस्लिम समाज के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने कहा कि 'मेरी लड़ाई धार्मिक नहीं, मेरी लड़ाई सामाजिक है, जहां ऊंची ज़ाति के मुसलमानों ने पसमांदा मुसलमानों को किसी भी क्षेत्र में बराबरी का दर्जा नहीं दिया, बल्कि उनका शोषण किया जो लोग सब मुसलमानों की बराबरी की वकालत कर रहे हैं, उनको मुसलमानों की पसमांदगी कभी नजर नहीं आई.
अनीस मंसूरी ने कहा कि 'पसमांदा मुसलमानों की बदहाली को लेकर समाज में फैली भेदभाव की नीति पर काका कलेनकर आयोग, रंगनाथ मिश्र कमीशन, जस्टिस राजिंन्द्र सच्चर कमीटी ने अपनी रिपोर्ट के ज़रिये मोहर लगाई है, यही नहीं अभी हाल में ही देश के प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की बदहाली को लेकर के कई बार गहरी चिंता जताई है, जो इस बात को साबित करती है कि देश में 85% आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों के हालात बद से बदतर है. अनीस मंसूरी ने कहा कि 15 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद जब हमने पसमांदा मुसलमानों की समस्याओं को लेकर के देश में जब जन आंदोलन खड़ा किया तो जमींदारी सोच रखने वाली राजनैतिक पार्टियों और उन पार्टियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल सरकारी मौलानाओं के पेट में दर्द हो रहा है.'