प्रयागराज:गंगा में प्रदूषण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को जिम्मेदार अफसरों पर नाराज़गी जाहिर की. अदालत ने कहा कि अधिकारी गंगा की सफाई नहीं कर पा रहे हैं या करना ही नहीं चाहते. कोर्ट ने मामले में सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रखने का निर्देश देते हुए सरकार का पक्ष रखने के लिए महाधिवक्ता बुलाया है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण (Allahabad High Court on pollution in Ganga ) मामले की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया.
कोर्ट ने गत एक नवंबर को विभिन्न विभागों के हलफनामों में विरोधाभास को देखते हुए महाधिवक्ता को सभी की ओर से एक हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट पक्ष रखने का आदेश दिया था. अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह सरकार का पक्ष रखने आए तो कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए कहा कि महाधिवक्ता स्वयं आएं. याचिका पर सुनवाई के दौरान अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व शैलेश सिंह ने कहा कि कि छह जनवरी से माघ मेला शुरू हो रहा है लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद गंगा में स्नान के लिए पर्याप्त जल नहीं है. श्रद्धालु मेला क्षेत्र में आ चुके हैं लेकिन अधिकारी कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं. गंगा का जल बहुत गंदा भी है क्योंकि नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. उन्होंने यह भी बताया की पॉलीथिन पर पाबंदी की महज खानापूरी की गई है.
गंगा की सफाई पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अरुण कुमार गुप्ता ने कहा कि गंगा की स्वच्छता (allahabad high court on cleaning ganga) के नाम पर अधिकारी केवल धन खर्च कर रहे हैं और गंगा स्वच्छ नहीं हो रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में उनकी शोधन क्षमता से दूना पानी आ रहा है. 60 फीसदी सीवर एसटीपी से जोड़ा गया है. शेष 40 फीसदी सीवर सीधे गंगा में गिर रहा है. नालों के बायोरेमिडियल शोधन की अधूरी प्रणाली से खानापूरी ही की जा रही है. उन्होंने कहा कि केवल गंगा में पानी छोड़ने भर से गंगा स्वच्छ नहीं होगी. राजापुर एवं नैनी सहित कई एसटीपी से फ्लो 120 एमएलडी आ रहा है, जबकि क्षमता 60 एमएलडी की है.