लखनऊ: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय की सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज टीम ने कोरोना से लड़ाई में नई तकनीक विकसित की है. एकेटीयू की सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज टीम ने नोट गिनने वाली मशीन के साथ सेंसर युक्त सैनिटाइज प्रणाली विकसित की है. इस तकनीक के माध्यम से 1 मिनट में 200 नोटों की गिनती करने के साथ ही उन्हें सैनिटाइज भी किया जा सकेगा.
जानकारी देते एसोसिएट प्रोफेसर अनुज शर्मा. देश और प्रदेश में कोरोना का बहुत तेजी के साथ प्रसार हो रहा है. ऐसे में कोरोना से बचाव को लेकर हर कोई सतर्क है. इस महामारी के दौर में ऐसे कई आविष्कार हुए हैं, जिनसे कोरोना से बचाव संभव हुआ है. इसी क्रम में एकेटीयू की एडवांस्ड स्टडीज ने एक नई तकनीक विकसित की है. एकेटीयू की टीम ने नोट गिनने वाली मशीन को सैनिटाइजिंग सिस्टम से जोड़ दिया है.
सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर अनुज शर्मा ने बताया कि नोट को सैनिटाइज करने के लिए जो मशीन तैयार की गई है वह बाजार में उपलब्ध नोट गिनने वाली मशीन ही है. इसे सैनिटाइजिंग प्रणाली के साथ जोड़ा गया है. थोड़े से सुधार के साथ मशीन में एक सैनिटाइजर बोतल फिट की गई है और साथ ही नोटों की गिनती के दौरान सैनिटाइजर को नोटों पर छिड़कने की व्यवस्था की गई है. सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज की ओर से तैयार की गई इस नई मशीन में 1 मिनट के दौरान 200 नोट को गिनती करने के साथ ही सैनिटाइज भी किया जा सकता है. सैनिटाइजिंग की जो व्यवस्था की गई है, उसमें इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि सैनिटाइजर का इस्तेमाल इतना अधिक न किया जाए जिससे नोट खराब न हो.
उन्होंने बताया कि सैनिटाइजर के अलावा भी इस मशीन में अल्ट्रावायलेट किरणों से शुद्धिकरण की व्यवस्था भी की गई है. इस तरह इस मशीन से गुजरने वाला हर नोट पूरी तरह से वायरस मुक्त होगा. इस मशीन का उपयोग करने से उन स्थानों पर कोरोना के खतरे को बेहद कम किया जा सकेगा, जहां बड़ी तादाद में हर रोज नोट की गिनती होती है जैसे रेलवे और रोडवेज स्टेशन, बैंक और इंश्योरेंस कार्यालय, बिजली का बिल जमा करने वाले केंद्र और खरीद-फरोख्त के थोक बाजार.
उन्होंने बताया कि इस नई तकनीक को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एकेटीयू की रिसर्च टीम ने यह भी ध्यान रखा है कि मशीन की लागत बहुत ज्यादा न बढ़े. इस तकनीक के साथ बाजार में मशीन को 15 हजार से 18 हजार में उपलब्ध कराया जा सकता है. सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज की इस टीम में पीएचडी स्कॉलर महीप सिंह का सराहनीय योगदान है.