लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव धर्म और जाति से जुड़े विषयों पर अक्सर खामोशी अख्तियार कर लेते हैं. शायद वह नहीं चाहते कि कोई भी वर्ग उनसे नाराज हो. हालांकि विषय जब उनकी ही पार्टी के बड़े नेता के विवादित बयान का होता है, तब उनकी खामोशी को कई लोग स्वीकारोक्ति भी समझ लेते हैं. समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने हाल ही में हिंदुओं की पवित्र पुस्तक रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया था. विवाद ज्यादा बढ़ने पर अखिलेश के चाचा और पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने इससे स्वामी प्रसाद मौर्य का निजी बयान बताते हुए इससे किनारा कर लिया था. इस बयान के बाद अखिलेश यादव मीडिया के सामने तो आए, लेकिन इस पर अपना पक्ष रखने से बचते रहे.
पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में कई जाति और धर्म के कुछ विषय चर्चा में थे. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर पर निर्णय दिए जाने के बाद हो रही गतिविधियों का विषय हो या तीन तलाक को लेकर कानून बनाने की बात अथवा हिजाब को लेकर चला देशव्यापी विवाद. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इन विषयों पर खुलकर कभी बात नहीं की. प्राय: वह इन विषयों से बचते ही नजर आए. रामायण पर प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद भी अखिलेश यादव खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. पार्टी के अन्य नेता भले ही इसे स्वामी प्रसाद मौर्य की व्यक्तिगत राय बता रहे हो, लेकिन अखिलेश यादव इस पर कुछ नहीं बोल रहे. शनिवार को अखिलेश और स्वामी प्रसाद मौर्या की लंबी बैठक भी हुई, लेकिन इस विषय पर अखिलेश के विचार लोगों को पता नहीं चल सके. स्वामी प्रसाद मौर्या का यह बयान दलित वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए सोची-समझी रणनीति माना जा रहा है. अखिलेश यादव जातीय वोट बैंक बना रहे इस बाबत बहुत सतर्क रहते हैं और ऐसे विषयों पर बयान देने से बचते हैं.
यादवों और अल्पसंख्यकों के वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखने वाली समाजवादी पार्टी दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को खुद से जुड़ना चाहती है. अखिलेश यादव को लगता है कि ज्यादातर ऊंची जातियों का वोट भाजपा को मिलता है. यही कारण है कि उन्हें ऐसे बयानों से कोई नुकसान होता दिखाई नहीं देता. विधानसभा चुनाव से पहले जब तीन तलाक और हिजाब आदि के विषय सुर्खियों में थे, तब भी अखिलेश यादव अधिकांश समय चुप ही रहे. उन्हें लगता है अल्पसंख्यक मतदाताओं को उत्तर प्रदेश में और कोई दल रास नहीं आता, इसलिए वह और कहीं नहीं जाएंगे. किसी धर्म विशेष का पक्ष लेने से अन्य वर्ग नाराज भी हो सकते हैं. इसीलिए वह ऐसे बयानों से बचते हैं. रामायण को लेकर शुरू हुआ विवाद सपा को फायदा देगा या नुकसान यह तो बाद पता में चलेगा, लेकिन अखिलेश अपनी रणनीति पर कायम हैं.
इस विषय में राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर प्रदीप यादव कहते हैं उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति इतनी भीतर तक समा चुकी है कि कोई भी दल इससे बच नहीं सकता. भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के लिए खुलकर बयान देती है और इस वोट बैंक पर उसने अपना प्रभाव जमा रखा है. चुनाव में उसे इसका खूब फायदा भी मिल रहा है. राज्य में बसपा और कांग्रेस हाशिए पर पहुंच चुकी हैं. ऐसे में सिर्फ समाजवादी पार्टी ही है एक ऐसा दल है जिसको सभी धर्म और जातियों का वोट मिलता है. खास तौर पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही है. यही कारण है कि अखिलेश यादव विवादित मसलों पर टिप्पणी करने से बचते हैं. यदि वह एक वर्ग के विषय में राय रखते हैं, तो दूसरा नाराज हो सकता है. ऐसे में खामोशी बेहतर उपाय है.