लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के टोल निजी कम्पनी को बेचने के भाजपा सरकार के फैसले को जनविरोधी बताया है. उन्होंने कहा कि यह एक्सप्रेस-वे समाजवादी सरकार के समय बना था, जिस पर वायुसेना के जहाज तक उतर चुके हैं. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे को निजी हाथों में सौपने की साजिश में लगे लोगों को समझ लेना चाहिए कि अगली समाजवादी सरकार बनने पर भाजपा के ऐसे तमाम अनुबंध रद कर दिए जाएंगे. इस मामले की जांच में जो भी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.
अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार का इरादा इसी तरह खेती को भी बड़ी प्राइवेट कम्पनियों के हवाले करने का है. किसानों के खेतों को पूंजीघरानों के पास बंधक रखने और अन्नदाता को भिखारी बनाने का यह कुचक्र तेजी से चल रहा है. इससे किसान अपनी खेती की जमीन का मालिक बनने के बजाय उसका खेतिहर मजदूर बन जाएगा. सपा मुखिया ने कहा कि यह समझ से परे है कि भाजपा सरकार निजी कम्पनियों पर इतना मेहरबान क्यों हो रही है.
सरकार से कोष पर किया सवाल
अखिलेश ने कहा कि अभी उसने कोरोना संकट के बहाने सभी कर्मचारियों, सांसदों, विधायकों से अच्छी खासी धनराशि ली है. कर्मचारियों के भत्ते खत्म कर दिए हैं. जनता से भी आर्थिक मदद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के कोष में जमा हुई है. इसके बाद आखिर सरकार के कोष में कितनी रकम की कमी हो गई है. अखिलेश ने कहा कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे एक सरकारी परियोजना के अंतर्गत बना है. इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण में जनता का धन लगा है.
'भाजपा उत्तर प्रदेश को भी बेच सकती है'
समाजवादी सरकार ने इसके लिए बाकायदा बजट का प्रावधान किया था. राज्य की सम्पत्ति को इस तरह निजी हाथों में सौंपा जाना ठीक नहीं है. भाजपा सरकार राज्य की सम्पत्ति को बेचने का काम कर रही है. इस तरह तो भाजपा का बस चलेगा तो वह पूरे उत्तर प्रदेश को भी बेच सकती है. सपा अध्यक्ष ने सरकार से सवाल किया कि भाजपा सरकार की घोषणाओं, एमओयू व तमाम आश्वासनों के बावजूद उत्तर प्रदेश में पूंजीनिवेश तीन वर्ष में नहीं आया. अब अगर उत्तर प्रदेश को ही बेच देंगे तो क्या तमाम समस्याओं का समाधान हो जायेगा. उन्होंने कहा कि इस शानदार एक्सप्रेस-वे पर शौचालय, होटल रैस्टोरेंट को भी भाजपा सरकार बेच चुकी है. टोल वसूली का जिम्मा निजी एजेंसी को 15 से 20 साल तक के लिए दिए जाने की योजना है. भाजपा सरकार का यह कदम जनता से विश्वासघात है.