लखनऊ: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व विधान परिषद में नेता विपक्ष अहमद हसन का लंबी बीमारी के बाद आज निधन हो गया. 88 वर्ष की उम्र में उनके निधन से न सिर्फ समाजवादी पार्टी, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों में भी शोक की लहर है. एक पुलिस अधिकारी से लेकर विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष तक का सफल तय करने वाले सपा के वरिष्ठ नेता अहमद हसन आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन यूपी की सियासत में वो एक ऐसे नेता थे, जिनके स्वभाव का हर कोई कायल था. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी नेताओं में शुमार अहमद हसन मुलायम सरकार में भी मंत्री रहे और बाद में अखिलेश यादव सरकार में भी मंत्री रहे. वह शालीन स्वभाव और ईमानदार छवि के राजनेता के रूप में अपनी पहचान रखते रहते थे. उनकी इसी छवि के चलते उत्तर प्रदेश में विरोधी विचारधारा वाली भाजपा व अन्य पार्टियों के नेता भी उनका सम्मान करते रहे थे.
पिछले काफी समय से वह बीमार चल रहे थे. पिछले साल जब वह बीमार हुए तो उनका हालचाल लेने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अस्पताल पहुंचे थे. इसके अलावा अन्य दलों के नेताओं ने भी उनका हालचाल लिया और उनके शीघ्र स्वास्थ्य की कामना की थी. अहमद हसन का जन्म दो जनवरी 1934 में अंबेडकरनगर में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता, मौलाना मोहम्मद यूसुफ जलालपुरी एक बहुत धार्मिक विद्वान और एक समृद्ध व्यवसायी थे. अपने पिता के संरक्षण में अहमद हसन ने अरबी और उर्दू सीखी और पवित्र कुरान का अध्ययन किया. अंबेडकरनगर से ही हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने स्नातक और कानून की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की थी.
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इसके बाद वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे और उन्होंने UPSC परीक्षा पास की और 1958 में भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हो गए. उन्हें 1960 में लखनऊ के पुलिस उपाधीक्षक के रूप में पहली पोस्टिंग मिली थी. इसके बाद वह कई जिलों में पुलिस अधीक्षक सहित अन्य पदों पर तैनात रहे. अहमद हसन जब पुलिस अधिकारी थे तो उनके किए गए पुलिस सेवा के सराहनीय कार्यों की वजह से कई बड़े पदक भी मिले, जिनमें राष्ट्रपति पदक से लेकर वीरता पदक तक शामिल रहे. इसी कड़ी में 1967 में एटा के डीएसपी के रूप में उन्होंने खूंखार कुख्यात डकैत चबूराम के गैंग का सफाया किया और उसके सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया था. असाधारण वीरता के इस सराहनीय कार्य के लिए अहमद हसन को राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण खुलासे और सराहनीय कार्य किए. 1989 में उन्हें डीआईजी के पद पर प्रमोशन मिला और वह 1992 में सेवानिवृत्त हुए थे.