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नेताजी की मेहरबानी से राजा भैया देख सके थे अपने जुड़वां बेटों का मुंह...

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Published : Dec 26, 2021, 11:51 AM IST

तब राजा भैया जेल की सलाखों के पीछे थे और उनके यहां जुड़वा बेटों का जन्म हुआ था. मायावती राजा भैया से इस कदर खफा थी कि उन्होंने राजा भैया को 10 महीने तक POTA के तहत जेल में बंद रखा था. लेकिन सत्ता में मुलायम के आते ही वो सलाखों से बाहर निकल आए. कहा जाता है कि सत्ता में आते ही महज आधे घंटे के भीतर मुलायम ने राजा भैया पर से पोटा के तहत सभी मुकदमे खारिज करने का आदेश दिया था.

नेताजी की मेहरबानी से जेल से छूटे थे राजा भैया
नेताजी की मेहरबानी से जेल से छूटे थे राजा भैया

हैदराबाद: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) को अभी वक्त है, लेकिन सभी सियासी पार्टियां अभी से ही चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं. आलम यह है कि ओमीक्रोन के बढ़ते खतरे के बीच जनसभाओं और यात्राओं का कारवां अपने चरम पर है. मंचों से आरोप-प्रत्यारोप के साथ ही सियासी डिक्शनरी में रोजाना ऐसे-ऐसे शब्द जुड़ रहे हैं, जिसकी पहले कोई कल्पना ही नहीं थी. लेकिन यूपी की सियासत में हर चीज की संभावना बनी रहती है. खैर, आज हम राजा भैया पर मुलायम सिंह यादव की उस मेहरबानी का जिक्र करेंगे, जिसे जान आप भी राजा भैया और मुलायम सिंह यादव के बीच की कैमिस्ट्री को समझ जाएंगे, लेकिन पिता से राजा भैया के बेहतर संबंध के बावजूद बेटे अखिलेश यादव को कभी राजा भैया रास नहीं आए. यही कारण है कि जब इस बीच सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से राजा भैया के बाबत सवाल किया गया तो वो भड़क गए और फिर यह कह सबको चौका दिया कि कौन राजा भैया.

खैर, हम सियासी किस्से की ओर रूख करते हैं. कहा जाता है कि साल 2003 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के आधे घंटे के भीतर ही मुलायम सिंह ने राजा भैया पर से पोटा के तहत सभी मुकदमे खारिज करने का आदेश दिया था. बाद में मुलायम सिंह की सरकार में राजा भैया को खाद्य मंत्री भी बनाया गया था.

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया

दरअसल, राजा भैया को मायावती ने 10 महीने तक पोटा के तहत जेल में बंद रखा था. बात 2002 की है. देश के सबसे बड़े राज्य यूपी का बंटवारा हो चुका था. उत्तराखंड अलग राज्य बन चुका था और यूपी के हिस्से में मात्र 403 विधानसभा सीटें रह गई थीं. जब राज्य में 14वीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो परिणाम त्रिशंकु आए और राज्य में 8 मार्च से 3 मई तक राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.

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हालांकि, इन चुनावों में 143 सीटें जीतकर समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. लेकिन सरकार बनी 98 सीट जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी की. मायावती 3 मई, 2002 को तीसरी बार भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बनी थीं. तत्कालीन यूपी भाजपा अध्यक्ष कलराज मिश्र इस्तीफा देकर मायावती मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने थे. उनके साथ भाजपा के लालजी टंडन, ओमप्रकाश सिंह और हुकुम सिंह भी कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. तब विनय कटियार को यूपी का भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था.

इस सरकार का बचाव करते हुए तब विनय कटियार ने कहा था कि हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है. मायावती के साथ पहले भी दो सरकारों में भाजपा असहज रही थी. इस बार भी गाड़ी पटरी पर हिचकोले ले रही थी, तभी मायावती ने भाजपा विधायक पूरण सिंह बुंदेला की शिकायत पर 2 नवंबर, 2002 को तड़के सुबह करीब चार बजे प्रतापगढ़ के कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को आतंकवाद निरोधक अधिनियम पोटा के तहत गिरफ्तार करवाकर जेल में डलवा दिया.

राजा भैया के साथ उनके पिता उदय प्रताप सिंह और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को भी अपहरण और धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. असल में राजा भैया उन 20 विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने तत्कालीन गवर्नर विष्णुकांत शास्त्री से मायावती सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी. राजा भैया की गिरफ्तार होने के बाद मायावती और भाजपा में टकराव बढ़ गई.

बसपा सुप्रीमो मायावती और रघुराज प्रताप सिंह

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प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विनय कटियार ने राजा भैया पर से पोटा हटाने की मांग की, लेकिन मायावती ने इससे इनकार कर दिया. इसी बीच ताज कॉरिडोर के निर्माण को लेकर यूपी सरकार और केंद्र सरकार में विवाद पैदा हो गया. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और जगमोहन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री थे.

मायावती ने इन विवादों के बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जगमोहन से इस्तीफे की मांग कर दी. इससे भाजपा और मायावती में रिश्ते और बिगड़ गए. आखिरकार 26 अगस्त, 2003 को मायावती ने कैबिनेट मीटिंग कर विधानसभा को भंग करने की सिफारिश राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री से करते हुए अपना इस्तीफा सौंप दिया. इन सबके बीच लालजी टंडन ने आनन-फानन में राजभवन पहुंचकर बसपा से समर्थन वापसी का पत्र गवर्नर को सौंप दिया.

राज्यपाल ने इस आधार पर कि मुख्यमंत्री का पत्र मिलने से पहले समर्थन वापसी की चिट्ठी मिल गई थी इसलिए विधानसभा भंग नहीं की. इसके बाद भाजपा ने अपने सियासी विरोधी मुलायम सिंह यादव की मदद की और मुलायम सिंह ने उसी दिन सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. इस बीच बसपा के 13 विधायकों ने मुलायम सिंह को समर्थन देने का ऐलान करते हुए राज्यपाल को चिट्ठी सौंप दी.

मायावती उनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के पास चली गईं और दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई की मांग करने लगीं, लेकिन भाजपा से संबंध रखने वाले विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस बीच तिकड़म के धुरंधर मुलायम सिंह यादव ने 16 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल कर लिया. बाद में उन्हें रालोद के अजीत सिंह ने भी अपने 14 विधायकों का समर्थन दे दिया.

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कांग्रेस के 25 विधायक भी मुलायम सिंह के समर्थन में आ गए और इस तरह 29 अगस्त, 2003 को मुलायम सिंह यादव तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. इधर, मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के आधे घंटे के भीतर ही मुलायम सिंह यादव ने राजा भैया पर से पोटा के तहत सभी मुकदमे खारिज करने का आदेश दिया था. बाद में मुलायम सिंह की सरकार में राजा भैया को खाद्य मंत्री भी बनाया गया था.

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और रघुराज प्रताप सिंह

जब पोटा एक्ट के तहत राजा भैया 10 महीने तक जेल में बंद थे, उसी बीच उनकी पत्नी भानवी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन वो उन्हें देख नहीं पाए थे. पोटा एक्ट हटने के बाद राजा भैया को जेल से राजधानी लखनऊ के सिविल हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया था. इसी बीच रास्ते में उन्होंने पहली बार अपने जुड़वां बेटों का मुंह देखा था.

बता दें कि राजा भैया कुंडा से 1990 से लगातार विधायक हैं और सभी पार्टियों में उनकी पैठ है. 2018 में उन्होंने अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक बनाई है और आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने 100 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है.

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